इंसान हमेशा हर पहलु को ज़िन्दगी के अपनी मुट्ठी में रखना चाहता
है पर हर बात उसके क़ाबू में नहीं हो सकती. ऐसा कहाँ होता है कि जब जैसा चाहो वैसा ही नतीजा निकले हर बात का. हाँ हम किसी और को तो नहीं अपने आप को बेहतर तरीक़े से क़ाबू कर सकते हैं. कोई मुश्किल आ जाए अगर तो किसी मदद के इंतेज़ार में बैठने से बेहतर है ख़ुद ख़राब हालात को बदलने की शुरुआत करें.मुश्किल को समझें. उसे सुलझाने की कोशिश करें. क़ामयाब ज़रूर होंगे. और क़ामयाबी क्या होती है ? आप और हम कुछ आसान से उसूल
अपना कर रोज़ उन पर एहतियात के साथ चलना सीख लें,तो क़ामयाबी कहाँ जाएगी आपके क़दमो तले ही रहेगी. किसी और से मत उम्मीद रखो किसी और से मत कुछ मांगों,और किसी और को नहीं, अपने आप पर क़ाबू रखना सीखो. ज़िन्दगी ख़ुशहाल जीने के तरीक़े यही हैं.
उम्मीदों ज़रा थमना
सीखो
ख़्वाइशों ज़रा संभलना
सीखो
बादलों से वफ़ा ना
मांगों
हवा से ये तो उड़ते
रहते हैं
मौसमों के साथ ये
बदलते हैं
ज़मी की मिटटी देती पनाह
ख़्वाईशों ने जो
बाँधा बंधन
है ज़िद किए बैठा ये दिल
ख़्वाब सजाए जो
अरमानों ने
लगी उगने नन्ही-नन्ही
उम्मीदें
क्या ज़मी की,क्या
आसमा की
फ़ितरत किसकी होती
वफ़ा की
ज़िद पर दिल
की,बेक़ाबू होना ना
चाहे किसी को कितना
भी चाहो
किसी पर ऐतबार चाहे
कर लो
ख़ुद का ऐतबार खोने
ना देना
पहले परखने से फ़ितरत-ऐ-ज़मी
जज़्बात दिल को बोने
ना देना
उम्मीदों ज़रा थमना
सीखो
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