देख कर जिन्हें एक फ़ख़र भरी मुझे मुस्कान दे
ज़िन्दगी में सभी को अपने छोटे-छोटे मुक़ाम तय कर लेना
चाहिए. एक मुक़ाम हासिल करने के बाद दूसरे मुक़ाम के लिए कौशिश शुरू कर देना चाहिए.
बे-वजह वहीँ थम कर नहीं रह जाना चाहिए. कभी छोटी-मोटी मुश्किलों से कभी घबराना
नहीं चाहीये, और ना ही उनसे पार पाने के लिए कोई ग़लत रास्ता अख़्तयार करना चाहिए.
ख़ुद पर फ़ख्र और ग़रुर कर सके ऐसे काम करना चाहिए. ऐसा नहीं कि बहोत बड़ी क़ामयाबी ही
फ़ख़र दिला सकती है. छोटे-छोटे कम दूरी के माइलस्टोन की क़ामयाबी भी वही एहसास और
सुकून, साथ में ख़ुशी दिलाएगी जो कोई बड़ी क़ामयाबी दिलाती है. अगर रास्ता सही हो और
ख़ुद की क़ाबलियत पर एतमाद हो, तो जीत आपकी ही होगी. छोटी-मोटी ग़लतियों को,
छोटी-मोटी नाकामयाबियों को नज़र-अंदाज़ करें ज़रूर पर साथ-साथ उनसे सीखते भी जाएँ
.ग़लतियों के डर से जब तक कौशिश ही नहीं करेंगे, तो कोई शुरुआत ही नहीं होगी, और
कोई शुरुआत नहीं होगी तब किसी मंज़िल, किसी मुक़ाम को कैसे पाएंगे? इसलिए नई शुरुआत
करें ज़रूर. साथ-साथ हर क़ामयाबी का जश्न मनाते जाएँ. छोटी हो या बड़ी क़ामयाबी तो
क़ामयाबी होती है.
ऐ, वक़्त मुझे सबर नहीं, बेसब्री दे
मुझे क़रार नही अभी तू बेक़रारी दे
मंज़िल पर पहुँचते ही, नए मक़सद की तैयारी दे
रुक कर पीछे रंज से ना देखूं कभी
ख़ुद पर शर्मिन्दगी मिले किसी हालात में
ऐसे कभी ज़िन्दगी में लम्हात ना दे
ज़िन्दगी के रास्तों में जो मुक़ाम हों
उन पर मैरे क़दमों के ऐसे निशान हों
देख कर जिन्हें फ़ख़र भरी मुझे मुस्कान दें
ऐ,वक़्त मुझे सबर नहीं, बेसब्री दे
बहोत ख़ास नहीं मैं बस आम रहूँ
किसी के कुछ काम मैं आ सकूँ
ख़्वाबों भरी आँखों को हक़ीक़त से मिला सकूँ
ऐसे मक़सद के मुझे निशानात दे
ऐ,वक़्त मुझे सबर नहीं बेसब्री दे
रास्ते आकर मुझ तक कभी ख़त्म ना हों
रास्तों से कभी पीछे मैं ना रहूँ
ना तो मै भूलूँ कभी रास्तों को
ना रास्ते मुझे गुज़रा हुआ कहें
फ़ुरसत नहीं मुझे तो मसरुफ़ियत दे
मंज़िल पर पहुचते ही नई मंज़िल का मुझे पता दे
किसी की दुआ में बसने का मुझे तू हुनर दे
किसी को सुकून दे सके ऐसा मुझे तू साया दे
मंज़िल पर पहुँचते ही नए मक़सद की मुझे तैयारी दे
ऐ,वक़्त मुझे सबर नहीं बेसब्री दे
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ReplyDeletevery nice poem...truly heart touching ...
ReplyDeletehttp://jnyanaranjan91.blogspot.in/