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Sunday 19 June 2016

परिंदेparinde


इस दुनिया में ज़्यादातर यही नज़र आता है कि आप और हम अक्सर अपने बच्चों के मुस्तक़बिल को ले कर परेशान तो होते ही हैं साथ-साथ उसे अपने मुताबिक़ बनाने में भी जुट जाते हैं. ये हम एक चूक कर डालते हैं.होना तो ये चाहिए कि हम उन्हें अच्छी तरबियत दे कर उन्हें अच्छी शख्सियत का मालिक बनाएँ,और अपने मुस्तक़बिल को वे ख़ुद बनाएँ. सारे के सारे बस अपने ख़्वाब अपने बच्चों के ज़रिये पुरे करना चाहते हैं.जो ग़लत तो है ही,पर बगैर अच्छे क़िरदार के तो ये सरासर बेबुनियाद क़दम है.और जब बुनियाद ही नहीं सही तो इमारत के ना तो महफ़ूज़ होने की और ना बुलंद होने की ग्यारंटी होती है.धृतराष्ट्र और शकुनी ने ख़्वाब तो देखा और कोशिश भी की. दुर्योधन को बादशाह बनाने की,लेकिन उसकी शख्सियत बुलंद बनाने की कोई कोशिश उन्होंने नहीं की. नतीजा सबके सामने है. उन्होंने मुस्तक़बिल बेहतर बनाना चाहा और ऐसी कोशिश भी की,लेकिन किरदार बेहतर बनाने की तरफ़ देखा भी नहीं. सही कहा गया है “ बच्चों की शख्सियत आप बनाइये अच्छी. अपना मुस्तक़बिल वो ख़ुद अच्छा बना लेंगे”.अब ज़मीन को ही देख लीजिये,अपने पानी को गर्म होना,ठंडा होना ये सिखा देती है,फिर  बादल बनकर बारिश करना या बर्फ़ की फ़ुहार करना ये ख़ुद तय करते हैं.


इस तरह परेशां क्यों है बन्दे
ना बांध ख्वाइशों में पर परिंदे

आसमानों में बसर करने वाले
वफ़ा की ज़मीन कभी परख ले

दुआओं को अपने तक ना रख
लबों पर औरों के मुस्कान रख
सबकी  दुआओं का मज़ा चख़

बेफ़िक्र बच्चों सा दिल बना अपना
चराग़ बना ख़ुद को अँधेरे कर फ़ना