Ads

Wednesday 30 September 2015

lafz adhura sa




इस जहाँ में इन्सान जब कभी किसी काम की शुरुआत करता है तब उसे कई अपने पराए लोगों की सलाह-मशवरों का सामना करना पड़ता है. उसकी कमियाँ ज़्यादा बताई जाती हैं. उसके हौसले बढ़ाने के बजाए हौसलों को पस्त ज़्यादा किया जाता है. उसे नाक़ामी से डराया जाता है. पर हर किसी इन्सान ने ये अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि किसी भी जगह से शुरुआत जब की जाती है तब ही आगे बढ़ा जा सकता है. जब तक पहली सीढ़ी पर चढ़ने के लिए क़दम नहीं बढाया जायेगा तब तक ऊपर कैसे पंहुचा जा सकता है. हर इन्सान में वो क़ुव्वत होती है जो उसे किसी भी काम को मुक़म्मल करने की हिम्मत और ताक़त तो देती ही है साथ-साथ उसे ख़ुद पर भरोसा करने का एहसास भी दिलाती है. ज़िन्दगी में कभी भी कहीं से भी शुरुआत की जा सकती है. छोटी-मोटी नाक़ामी के बाद फिर से एक छोटी सी शुरुआत करने में सबसे ऊपर पहुचने का रास्ता हमेशा होता है. एक छोटा बच्चा जब चलना सीखता है तो कई बार गिरता है,लड़खड़ाता है,पर हार नहीं मानता. वक़्त भी उसे चलना सीखने में काफ़ी लगता है.वो वक़्त की लम्बाई से,और मुश्किल हालात से हार मान कर नहीं बैठ जाता. तभी सीखता भी है.  हर शख्स अपने आप में मुक़म्मल होता है. बस उसे किसी और के जैसा बनने की ज़रूरत नहीं. वह ख़ुद एक मुक़म्मल शख्सियत का मालिक होता है.
      
कहने को  हूँ लफ़्ज़ एक अधूरा सा मै
रखता हूँ क़ुव्वत मुक़म्मल दास्ताँ की 

ख़ामोश निगाह या मुकुराह्ट हो बोलती
दर्द,ख़ुशी लफ्ज़ बनते आवाज़ सभी की

कोई लफ़्ज़-दर-लफ़्ज़ पढ़ता क़िताब-ऐ-जिंदगी
कोई हर्फ़-दर-हर्फ़ लिखता हक़ीकत-ऐ-जिंदगी

गलियारे से जिंदगी के गुज़र कभी की बंदगी
तजुर्बात  के मोतियों की कभी पिरोई तस्बीह

पुकारते हैं जो अधूरे हैं अफ़साने सभी
लफ़्ज़ पिरोने की उन्हें हसरत है अभी

सुना ना पाए जिन्हें छुपा भी न सके कभी
जलते बुझते जो थोड़े से हैं ये लफ़्ज़ सभी

वक़्त की राख से  जल जाएंगे अभी
कह जाएंगे ख़ुद की दस्ताने ज़िन्दगी