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Thursday 31 December 2015

nai subah नई सुबह


एक पुराना पल जाता है एक नया पल आता है. ले कर आ जाता है एक नई सुबह. नई ताजगी नया जोश. ये  नए साल की शुरुआत की अदा होती है . एक साल खत्म होता हो एक शुरू होता है. पल भर में मंज़र बदल जाता है. वक्त गुज़र जाता है. एक साल और जुड़ जाता है वक़्त के समंदर में. जो बीत रहा पल है वो भी,ढेर सारी यादों के साथ विदा लेता है ,जो आ रहा है वो भी कई नई यादों की  ज़मी तय्यार कर रहा होता है. कुछ फ़हरिस्त बन रही होती हैं. कुछ ख़्वाब जाग रहे होते है. कुछ ख़्वाइशे पैदा हो रही होती हैं.  कुछ नया सा ज़िन्दगी का आसमान लगने लगता है. कुछ बदलाव होगा ज़िन्दगी में कुछ वही पुराना रहेगा साथ में. सभी को ख़ुशदिली से अपना लो. ख़ुशी भी है इस बदलाव में . मुस्कान भी है शामिल इसमें. ख़ामोशी भी है, इसी में आवाज़ भी है शामिल इसमें. और हर एक का अपना एक अलग ही सुकून और इत्मीनान होता है. असली ख़ुशी असली सुख यही तो है.

लम्हा नया आता अब लम्हा-लम्हा थमकर
देखें उजाला ये नया लेकर आता या नहीं

जब मिली ख़ुशी,बेतहाशा हँसते रहे हम
यूँ क़तरा-क़तरा हँसना हमें आता नहीं

राहगुज़र अपनी संवारना है ख़ुद सबको
हर मुश्किल में बचाने मसीहा आता नहीं


गुल नए रंगों-बू में रोज़-रोज़ खिलते रहेंगे
चुन-चुन टूटने से इन्हें बचना आता नहीं

हर दिन एक नई क़यामत होती है यहाँ
ख़ुशी फिर भी नए बरस की जाती नहीं

तेरे ज़िन्दा होने की निशानी है जहाँ में
मुस्कुराने की वजह बेहतर इससे  नहीं

मत घबरा देख काले-काले साए  यहाँ
कहती छाया ,रौशनी मुझसे दूर नहीं

Tuesday 29 December 2015

seekh sako toसीख सको तो



इंसान की ज़िन्दगी में दुःख, परेशानी साथ साथ चलते ही रहते हैं. ऐसा लम्हा शायद कभी नहीं आता,जब सारी परेशानियाँ ख़त्म हो जाएँ. कुछ ना कुछ तकलीफ़, परेशानी तो होती ही है. लेकिन ऐसा भी नहीं होता कि साथ इसके कोई ख़ुशी ना हो ज़िन्दगी में. वो भी रहती ही है किसी ना किसी रूप में हमारे आपके साथ. इसीलिए ज़िन्दगी के ख़ुशनुमा पलों को हाथ से जाने नहीं देना चाहिए. उन्हें पहचान कर उनका लुत्फ़ उठाते रहना चाहिए. ऐसा नहीं कि सिर्फ़ मुश्किलों और परेशानियों के पीछे ही अपनी ज़िन्दगी मुहाल कर देना चाहिए. क्योंकि कुछ परेशानियाँ तो ख़ुद-ब-ख़ुद ही ख़त्म हो जाती हैं. कुछ थोड़ी बोहोत कोशिश से दूर हो जाती हैं,चाहे जल्दी या चाहे थोड़ा वक़्त ले कर, पर दूर हो जाती हैं. कुछ नई नई भी, साथ-साथ पनपती रहती हैं. इसलिए ज़िन्दगी के मज़े लेते रहना चाहिए. यही तो ज़िन्दगी है. असली ख़ुशी आपकी सोचों में होती है. आप किस बात को किस नज़रिए से देखते हैं.ये ख़ास मायने रखता है. ख़ुशी चाहिए तो उसे पहचानो भी,ख़ुश रहना भी सीखो.कभी ख़ुद से सीखो ,कभी दूसरों को देख कर सीखो.


बादलों की तरह बरसना क्या होता है
हमें देख कर समझ सको तो समझो

बिजली की तरह तड़पना क्या होता है
तड़प देख हमारी जान सको तो जानो

आँखों-आँखों में आंसू पीना क्या होता है
पढ़ सको तो दर्द की ख़ामोशी पढ़ लो

ज़ख्म सीते हैं सभी अपने इस जहाँ में
चाक जिगर सीना देख हमें  सीख लो

देख क़ातिल उतर आता, लहू नज़र में
मुस्कुराती नज़रों का क़हर अब देख लो

हमें था पता बेवफ़ाई तेरी फ़ितरत में है
तक़दीर अपनी ख़ुद बिगाड़ना यूँ देख लो

पशेमानी सबसे जाताना आसां नहीं होता
झूठ को सच बताना देख उन्हें सीख लो  

Saturday 26 December 2015

ye zindagiये ज़िन्दगी



यूँ तो लिख देना, कह देना शायद आसान होता है, लेकिन उस पर ख़ुद अमल करना मुश्किल होता है. क़ामयाब वो नहीं होता जो अभी आपको बुलंदी पर नज़र आ रहा होता है.असल में जिसने पहले नाक़ामी पर जीत हासिल की होती है वही आज क़ामयाब होता है. जैसे  कहा गया है कि बहादुर वो नहीं होता जिसे डर नहीं लगता ,बल्कि बहादुर वो है जो डर पर जीत हासिल कर लेता है. इसी तरह क़ामयाबी का होता है. पिछली आपकी हार या आपकी जीत उससे  आपके हौसलों पर कोई फ़र्क़ नहीं पड़ने देना चाहिए. पिछला सब भूल कर अभी यानि इस वक़्त जब आगे बढ़ रहा हो तब अपनी सबसे बहतरीन ताक़त का इस्तेमाल करे.  दुनिया में सभी दर्द के, नाक़ामी के, तकलीफ़ के कभी ना कभी शिकार होते ही हैं.ग़लतियाँ भी सभी से कभी ना कभी होती ही हैं. अक्सर इन लम्हों में आपके अपने काफ़ी मददगार साबित होते हैं.दुःख,तकलीफ़ या परेशानी को लिख कर भी आप एक नई रौशनी पा सकते हैं. नया रास्ता ढूंढ सकते हैं. हाँ अपने दर्द, अपनी तकलीफ़ या अपनी हार को, अपना औज़ार बनाएँ,अपनी ताक़त बनाएँ ना कि अपनी कमज़ोरी.


खामोशियाँ मेरी चीख़ती हैं
आवाज़ों को मिले ना अल्फ़ाज़ जब
गुमसुम से सन्नाटे रोते हैं
दिल में हों आँसू,हँसी चेहरे पर जब
ज़िंदगी के गीतसिसकते हैं
क़िस्मत की क़लम टूट जाती जब
हौसला मेरा लहुलुहान होता है
मिलकर मंज़िल खो जाती जब
ज़िंदगी झूठ पर मुस्कुराती है
हक़ीक़त से प्याले लबरेज़ हो जब
ज़िद्दी परिंदा उड़ जाना चाहे

सारी उम्र लिखा जो ख़त,खो जाए जब

Thursday 24 December 2015

usul zindagi keउसूल ज़िन्दगी के



इंसान हमेशा हर पहलु को ज़िन्दगी के अपनी मुट्ठी में रखना चाहता
है पर हर बात उसके क़ाबू में नहीं हो सकती. ऐसा कहाँ होता है कि जब जैसा चाहो वैसा ही नतीजा निकले हर बात का. हाँ हम किसी और को तो नहीं अपने आप को बेहतर तरीक़े से क़ाबू कर सकते हैं. कोई मुश्किल आ जाए अगर तो किसी मदद के इंतेज़ार में बैठने से बेहतर है ख़ुद ख़राब हालात को बदलने की शुरुआत करें.मुश्किल को समझें. उसे सुलझाने की कोशिश करें. क़ामयाब ज़रूर होंगे. और क़ामयाबी क्या होती है ? आप और हम कुछ आसान से उसूल
अपना कर रोज़ उन पर एहतियात के साथ चलना सीख लें,तो क़ामयाबी कहाँ जाएगी आपके क़दमो तले ही रहेगी. किसी और से मत उम्मीद रखो किसी और से मत कुछ मांगों,और किसी और को नहीं, अपने आप पर क़ाबू रखना सीखो. ज़िन्दगी ख़ुशहाल जीने के तरीक़े यही हैं.

उम्मीदों ज़रा थमना सीखो
ख़्वाइशों ज़रा संभलना सीखो
बादलों से वफ़ा ना मांगों
हवा से ये तो उड़ते रहते हैं
मौसमों के साथ ये बदलते हैं
ज़मी की मिटटी देती पनाह
ख़्वाईशों ने जो बाँधा बंधन
है ज़िद किए बैठा ये दिल  
ख़्वाब सजाए जो अरमानों ने
लगी उगने नन्ही-नन्ही उम्मीदें
क्या ज़मी की,क्या आसमा की
फ़ितरत किसकी होती वफ़ा की
ज़िद पर दिल की,बेक़ाबू होना ना
चाहे किसी को कितना भी चाहो
किसी पर ऐतबार चाहे कर लो
ख़ुद का ऐतबार खोने ना देना
पहले परखने से फ़ितरत-ऐ-ज़मी 
जज़्बात दिल को बोने ना देना
उम्मीदों ज़रा थमना सीखो












Wednesday 23 December 2015

mera haq मेरा हक़



यूँ तो इस दुनिया में अक्सर किसी और की ज़िन्दगी में दख़ल का हक़ सा समझते हैं लोग. जबकि आपकी ज़िन्दगी पर सिर्फ़ आपका हक होता है. सारे फ़ैसले आपके होते हैं. सारे ख़्वाब आपके होते हैं. ना तो किसी और ने उन्हें अपने हिसाब से तय करना चाहिये और ना आपको कोई बहाना या सफ़ाई पैश करने की ज़रूरत है कि कोई फ़ैसला या कोई काम  आपने क्यों किया या क्यों करना है. वजह आपको मालूम है ,बस! यही काफ़ी है. आप पर आपका हक़ है. आपके वक़्त पर आपका हक़ है. आपके ख़्वाबों पर आपका हक़ है. आपकी ज़िन्दगी पर आपका हक़ है. कोई और कोई हक़ नहीं रखता कि आपके वक़्त को बर्बाद करे. आपकी इज्ज़त जो आप ख़ुद को देते हैं वो आपसे ले, या चाहे की उसे दी जाये, वो कोई भी हो इस बात का क़तई हक़दार नहीं होता. आप किससे प्यार करें, किससे मोहब्बत ना करें,किसकी इबादत करें. इस फ़ैसले पर भी सिर्फ़ आपका हक़ होता है. ना तो इस बात के लिए किसी की इजाज़त की ज़रूरत है और ना किसी को वजह बताने की ज़रूरत है.
अपनी ज़िन्दगी अपने तरीक़े से जीना आपका पहला हक़ है,ख़ुद के लिए,ख़ुद का एक फ़र्ज़ है. उसे दूसरों के हिसाब से दूसरों की ख़ुदग़रज़ी की ख़ातिर ना छोड़ें.
ज़िन्दगी ख़ुशग़वार जियें. जितना आप दूसरों की बात मानेंगे वो
उतना ही आपके हर फ़ैसले में दख़ल देंगे. सच ही है सुनने वाले
जितना सुन कर मानेंगे उतना ही कहने वाले कहेंगे. कमाल कहने
वालों का नहीं सुनने वालों का होता है.


सुनने वालों का कमाल है
कहने वाले तो बहोत कहते हैं

ठहरे हुए पानी सा रिवाज़ है
मुझे ये तरक्की-पसंद कहते हैं

समझो जो ख़ामोशी में हैं
मायने अल्फ़ाज़ के तो बहोत होते हैं

दिल के अरमानों का कमाल है
वहम पर यक़ीन करने को कहते हैं

जहाँवाले यूँ मसले आसान करते हैं
कभी भूला नहीं,उसे याद कर कहते हैं

ये पाक़ीज़ा तेरी मोहब्बत का कमाल है
बा-वज़ू हम ख़यालों में तेरे डूबते-उभरते हैं


Sunday 20 December 2015

mere ehsas tere jazbaatमेरे एहसास तेरे जज़्बात



एहसास और जज़्बात का होना इन्सान की ज़िन्दगी में बेहद ज़रूरी होता है. ये ही होते हैं जो इंसान को इंसान से जोड़ते हैं. उन्हें दोस्त और दुश्मन बनाते हैं.इन्ही के होने से खुबसूरत लम्हों को इंसान जी पता है वरना तो हर पल, हर लम्हा  बेजान सा हो कर गुज़र जाएगा . जज्बाती और एह्सासी लोग छोटी-छोटी बातें छोटे-छोटे बदलाव सब गौर से देखते हैं, महसूस करते हैं. अक्सर जिन लम्हों को लोग नज़रों के सामने होते हुए भी नहीं देख पाते,एहसास और जज़्बात रखने वाले इंसान की निगाह इन लम्हों की गवाह बनती है. अक्सर कोई ख़तरा भी इसी वजह से ये लोग जल्दी से भाँप जाते हैं,क्योंकि हर बदलाव पर इनकी नज़र होती है. इनके एहसास बहोत ताक़तवर होते हैं,इसलिए इनकी ज़िन्दगी में ख़ुशगवार मौक़े बढते हैं. इनमे किसी हुनर का होना तो लाज़मी है ,ये दूसरों के हुनर का भी ज़्यादा से ज़्यादा लुत्फ़ उठाते हैं.ज़ाहिर सी बात है हर रिश्ता एहसास और जज़्बात के साथ ही निभाया जा सकता है.

मै कह देता हूँ दिल के जज़्बात
सुनते तुम धड़कनों से हर बात
आँखों से तुम लेते जुबां का काम
समझता हूँ लेकिन मै हर एहसास
नज़रें बयाँ  कर देती  सारी  बात
वक़्त मै हूँ तुम्हारा,तुम लम्हा मेरा
शामिल एक-दूजे में गुज़र तेरा-मेरा
ख़याल जिन्हें ना मै समझ पाया
यूँ ही उन्हें मैंने तुम्हे  समझाया
ना मिल कर भी मिलने का मज़ा आया
कभी तन्हाई में तसव्वुर जो तेरा आया
जब चाहता आवाज़ तुम्हे देकर बुला लेता
चाहा आज ख़ामोशी का इम्तेहान ले लेता
ख़ामोशी कर दे बयाँ वो अनकहे जज़्बात
लफ्ज़ मेरा  जिन्हें कह शायद ना पाता

Thursday 17 December 2015

guzra hua kal गुज़रा हुआ कल




इंसान की ज़िन्दगी में दो वक्त ज़्यादा  काम के होते हैं,उसका बीता हुआ कल और उसका आने वाला कल. इस लिहाज़ से देखा जाए तो एक रफ़्तार से गुज़रता हुआ पल जो एक बोहोत ही छोटा सा पल या वक़्त होता है . ये आपका मौजूदा वक़्त है. आप चाहे कुछ भी कर लें जो वक़्त बीत गया उसे रत्ती भर भी नहीं बादल सकते. फिर उस पर सारा ध्यान देने की ज़रूरत ही क्या है? पुरानी बीती बातें आपको ख़ुश या नाराज़ या संजीदा कर सकती हैं .उसे याद करने में आपका वक़्त भी जाता है और आपकी अपनी ज़िन्दगी को अपने तरीक़े से जीने की ताक़त भी कम होती जाती है.आपको हासिल कुछ नहीं होता. इसलिए ये सोचना कि अगर ऐसा हुआ होता तो ऐसा होता,एसी बातों में कुछ भी नहीं रखा. अपनी ज़िन्दगी को आगे बढ़ाना ही आपका मक़सद होना चाहिए. किसी से आप नाराज़ हैं तो उसे माफ़ करना सीखिए. ये किसी और के लिए नहीं ख़ुद अपने आप के लिए फ़ायेदेमंद होगा.किसी को माफ़ ना करके आप ख़ुद को एक दायरे में क़ैद सा कर लेते हैं. जिससे नाराज़ या ख़फ़ा हैं उसे नुक़सान नहीं होता नुक़सान में आप हीरहते हैं,आपको बेचेनी, गुस्सा बीमार करदेताहै.परेशान कर देताहै.किसी को माफ़ करके आप उस दायरे से ख़ुद को आज़ाद  करते  हैं. और आज़ादी क्या होती है हर कोई जानता है. आपको एकदम से ख़ुशी महसूस होगी आप ख़ुद को कहीं ज़्यादा मज़बूत पातेहैं.सारा ज़हनी तनाव ग़ायब हो जाता है. नई ताक़त और नया जोश आपमे आ जाता है.


मैं एक गुज़रा हुआ हूँ कल
मुझे ढूंढने की ज़हमत ना करना
मेरा आशियाना तू पा ना सकेगा
वक़्त ने जो बदला मिजाज़
बदल लिया मौसम ने भी ठिकाना
तेरे इर्द-गिर्द है शोर बहोत
मेरी खामोश सदाएँ सुन ना सकेगा
अरमान आँखों में हैं दफ़न
मेरी मजबूरियों को पढ़ ना सकेगा
मुझे उसूलों से है मेरे इश्क़
पा कर भी मुझे पा कभी ना सकेगा
कायदों में बसती है ज़िन्दगी
पाकर साहिल भी,मंज़िल पा ना सकेगा
दायरे मेरे भी हैं, हदें तेरी भी
ताल्लुक़ की क़ीमत चुका ना सकेगा
शाख़ बदली तूने,वक़्त बदलते ही
घौसला मैंने भी नया लिया बना
तू मुझे अब तलाश ना कर सकेगा
जो गुज़र गया वो नहीं बदला
कल नहीं,बदला तो आज है
ये हक़ीकत दुखती रग़ से छुपा ना सकेगा



Tuesday 15 December 2015

becheniyan बेचैनियाँ



दुनिया की तरक्क़ी का राज़ यही है, की जो कुछ मयस्सर है उससे एक क़दम आगे का पाने की ख़्वाइश और कोशिश की जाये. यानि जो क़ायम है अभी, दुनिया में कुछ लोग पाकर सुकून से रहते हैं. सभी लोग लेकिन इस हासिल को चैन से क़ुबूल नही कर पाते. जो है अभी, उससे बढकर उन्हें चाहिए होता है. यही बढकर चाहिए वाली बात, दुनिया को आगे और आगे तरक्की की राह पर ले जाती है. जो आज नया है वो कल पुराना और पिछला बन जाता हैं. बढते रहना ही ज़िन्दगी की निशानी है. बेफ़िक्री से जीने वाले एक मुक़ाम पर थम से जाते हैं. बेचैन लोग तरक्की कर जाते हैं.
ख़्वाब देखे जाते हैं. उन्हें मुक्कम्मल करने की कोशिश की जाती है. जब तक वो पूरे नही होते ,तब तक उनके दिल-ज़हन में एक बेचैनी,एक बेक़रारी मौजूद रहती है. इसे दूर करने की कोशिश की जाती है,तभी ये बेचैन और बेक़रार इन्सान नई से नई ईजाद दुनिया में कर लेते हैं.

बेचैनियाँ और बेताबियाँ मिलती रही
तनहाइयाँ महफिलों में मिलती रही
ख़ुशियों से भरी सुबह भी मिलती रही
ख़ुमारी  से भरी रात भी मिलती रही
अँधेरा गुज़रा जब नज़दीक से होकर
रौशनी भी रफ्ता-रफ़्ता मिलती रही
आफ़ताब हो या माहताब फ़लक पर
क़ुदरत भी इन्हें दिखाती-छुपाती रही
रफ़्तार से चलते जाना है ज़िन्दगी
वक़्त की रफ़्तार याद दिलाती रही
मै वक़्त हूँ मुझे ना भूलना कभी
लौटकर आना मेरी फ़ितरत नहीं
हकीक़त की ख़्वाबों से दोस्ती रही
जज़्बात की अलफ़ाज़ से बंदगी रही
इबादत तेरी ज़िन्दगी मेरी आदत नहीं
सवालों में सारी उमर तू  हासिल रही

Friday 11 December 2015

jazbaat




इंसान जज़्बाती होता है.जज़्बाती होने का मतलब दुनिया की हर शय को महसूस करने की ताक़त होना. जज़्बात की ज़रूरत को समझना  भी ज़रूरी सी बात है,क्योंकि यह आदमज़ात को एक बेहतर इन्सान बनता है. क्योंकि अगर आप जज़्बाती हैं ,तब अपने साथ-साथ औरों के जज़्बात समझने की क़ाबिलियत भी रखेंगे, चाहे ज़ाहिर ना हो तब भी. अक्सर रिश्तों के मामले में ये बेहतर साबित होता है. अगर जज़्बाती इन्सान को उसकी कमी बताई जाये तो वो ज़रूरत के मुताबिक अपने आप को बदलने की कोशिश करता है,और वो बेहतर होता रहता है. ग़ैरजज़्बाती इन्सान किसी के लिए और किसी के कहने पर क्यों बदलेगा?
वक़्त के साथ जो बदलेगा नहीं. अपने आप में सुधार की ना तो
ज़रूरत समझेगा और ना वो  ख़ुद में कोई सुधार करेगा तो  वो
बेहतर कैसे बन पायेगा? इसलिए जो जज़्बाती होने को   ग़लत  मानते हैं  और जज़्बाती लोगों का मज़ाक़ उड़ाते हैं,वही,कहीं ना-कहीं थोड़े से ग़लत हैं. हाँ ज़्यादती हर बात की ग़लत होती है, ये माना. लेकिन जज़्बाती होना ग़लत है, ये बिलकुल सही नहीं है. जज़्बात ही तो इंसान को इंसान  बनाते  हैं.


जब यूँ ही कहीं,जब यूँ ही कभी

रिसने लगती है ज़िन्दगी कभी

सिसकते जज़्बातों के दरीचे भी

बुझने सारी चिंगारियां  लगती 

ऐसे में दहकने लगते अल्फ़ाज़

क़लम में आती है तभी रफ़्तार

पैनी सी हो जाती  इसकी धार

क्या होते सारे ऐसे एहसासात

जब होती हैं सारी बेड़ियाँ भी

सारे बंधन होते हैं मौजूद वहीँ

माएने मौजूदगी इनकी रखती नहीं

क़लम से टपकने लगते शोले भी

सारे अल्फ़ाज़ और ख़यालात भी

ये शुरुआत होती अच्छी कोई

या कहलाती ख़ात्मा-ऐ-बुराई

Wednesday 9 December 2015

mushkil hai safar



ज़िन्दगी सही तरीक़े से जीना और ख़ुशनुमा तरीक़े से जीना हर किसी की ख़्वाइश होती है. अक्सर हमारे साथ या हमारे आस-पास जब कुछ अनचाहा होता देखते हैं तब हम उसे होते रहने देते हैं.कई बार बर्दाश्त भी करते हैं.कई बार सहते-सहते हम उसके आदी से हो जाते हैं. हमें उसमे कुछ गलत नहीं नज़र आता. हम भी वेसे ही बनते जाते हैं जैसा हमारे आस-पास का माहौल होता है.
इसके उलट जब कभी ऐसा चाहा-अनचाहा होता है ,जो हमें बर्दाश्त नहीं होता. हम उसे होता नहीं देख सकते,तब उसे बदलने की कोशिश करते हैं. तब बदलने के लिए पूरी ताक़त से पुरज़ोर कोशिश करना चाहिए,और उसे अपने लायक़ बना लेना चाहिए. कभी ख़ुद को,कभी लोगों या हालात को बदल डालो. हर हाल में कोशिश ख़ुश रहने की होना चाहिए. यानीं वक़्त को अपना साथी बना लो या वक़्त के दोस्त बन जाओ.हमसफ़र साथ हो तो ज़िन्दगी आसान हो जाती है


राहे-ज़िन्दगी में, तन्हा चलना नहीं आसां

मुश्किल है सफ़र कुछ देर तो, चलो साथ

इस क़दर पराए नहीं, इतने अजनबी नही

कभी तो छोड़ दो, बेगानेपन का साथ

उलझनें तो, ज़मानेभर की हैं ज़माने में

गुज़र ना जाएँ लम्हात, आँसू बहाने में

अहिस्ता ही सही चलो,मुस्कान ले साथ

मिलते हैं ज़िन्दगी में हमसफ़र सच यही

तय होते हौसलों से सफ़र ये भी सच्चाई

शुरू करो ज़िन्दगी नई परवाज़ के साथ

कई अजनबी मोड़, राह में आते-जाते हैं

उलझन दरगुज़र करो, थामों तो मेरा हाथ

तेरे मेरे सवालों में,कई जवाब नज़र आते हैं

मेरी ख़ामोशी में जो है समझो,नाज़ के साथ

क्या शिक़ायत करूँ,क्या मै तुम्हे जवाब दूँ

तुम तो ले कर देखो कभी जुबां का साथ 

Monday 7 December 2015

shiqayat-e-qufr kyu



ज़िन्दगी में चैन और खुशियों के पल बढाने के लिए,ज़िन्दगी को ख़ुशनुमा बनाने के लिए,रोज़ हमें नए-नए इम्तेहान से गुज़रना चाहिए.गलतियाँ होती भी रहें तब भी. ग़लतियों से सीखने के लिए तय्यार रहना चाहिए. वेसे ग़लत कम करना आसान होता है.इसलिए मुश्किल से मुश्किल काम कर के ख़ुद को मुश्किल में डालते रहना चाहिए.रास्ते में मुश्किल ज़रूर आएगी लेकिन हम जानते हैं कि हम सही हैं. फिर कोई और कुछ भी समझे. 
अगर आप नहीं जानते खुशियाँ क्या हैं, क़ामयाब ज़िन्दगी क्या है,तो एक बार फिर से दोबारा गौर कीजिये.खुशियों तक पहुँचने के क्या राज़ हैं?
आपके अपने को जब आगे बढने का कोई रास्ता दिखाई ना दे,वो उदास हो हताश हो,तब आपको अपना हाथ सबसे पहले मदद केलिए बढाना चाहिए.उसके साथ इम्तेहान में ख़ुद भी शामिल हो जाना चाहिए. तब आपको मालूम होगा कि हमें किन चीज़ीं से ख़ुशी मिलती है.
पहले जो बीत गया वो बीत गया उस पर किसी का कोई बस नहीं. इसलिए उसे भूल कर आगे बढ़ जाना चाहिए. कई बार हर चीज़ बिखरी और बे-तरतीब दिखाई देती है,कुछ समझ में नहीं आता है. उस वक़्त उस बात को, उस वजह को सही तरीक़े से देखने के लिए, एक क़दम पीछे हट कर देखना और सोचना चाहिए. सही फ़ैसला लेने में आपको आसानी होगी. ख़ुश रहने के इम्तेहान आपको ख़ुद लेना हैं और उसमे क़ामयाब आप अपने ही तरीक़ों से हो सकेंगे, किसी और के नक्श-ऐ- क़दम पर चलने की आपको ज़रा भी ज़रूरत नहीं.   

माना बुलंदी पर हैं मसले मेरे
दुश्वारी जो  हैं मेरी हैं पैदाइश 
तुझसे शिकायत-ऐ-कुफ़्र क्यों करूँ
नादानी मेरी इब्लीस के सर क्यों करूँ
मंज़िलें मेरी मुझे हासिल है करना 
तेरे ज़िम्मे हर उम्मीद क्यों करूँ
सब तो कर चुका तू मेरे हवाले
फिर शिक़ायत-ऐ-कुफ़्र क्यों करूँ
तूने  दे रखा खुशियों का खज़ाना है
उदासियाँ पाल लेना आदत है मेरी 
तुझसे शिक़ायत-ऐ-क़ुफ़्र क्यों करूँ
है उफ़क़ पर सहर,लायेगा उसे सूरज
क़दम माना डगमगा रहे ज़रा मेरे
रास्ते मुश्किल भी सारे मैंने  चुने
तुझसे शिक़ायत-ऐ-क़ुफ़्र क्यों करूँ