इंसान की ज़िन्दगी
में दो वक्त ज़्यादा काम के होते हैं,उसका
बीता हुआ कल और उसका आने वाला कल. इस लिहाज़ से देखा जाए तो एक रफ़्तार से गुज़रता हुआ
पल जो एक बोहोत ही छोटा सा पल या वक़्त होता है . ये आपका मौजूदा वक़्त है. आप चाहे
कुछ भी कर लें जो वक़्त बीत गया उसे रत्ती भर भी नहीं बादल सकते. फिर उस पर सारा
ध्यान देने की ज़रूरत ही क्या है? पुरानी बीती बातें आपको ख़ुश या नाराज़ या संजीदा
कर सकती हैं .उसे याद करने में आपका वक़्त भी जाता है और आपकी अपनी ज़िन्दगी को अपने
तरीक़े से जीने की ताक़त भी कम होती जाती है.आपको हासिल कुछ नहीं होता. इसलिए ये सोचना कि अगर ऐसा हुआ होता तो ऐसा होता,एसी बातों में कुछ भी नहीं रखा. अपनी ज़िन्दगी को आगे
बढ़ाना ही आपका मक़सद होना चाहिए. किसी से आप नाराज़ हैं तो उसे माफ़ करना सीखिए. ये
किसी और के लिए नहीं ख़ुद अपने आप के लिए फ़ायेदेमंद होगा.किसी को माफ़ ना करके आप
ख़ुद को एक दायरे में क़ैद सा कर लेते हैं. जिससे नाराज़ या ख़फ़ा हैं उसे नुक़सान
नहीं होता नुक़सान में आप हीरहते हैं,आपको बेचेनी, गुस्सा बीमार करदेताहै.परेशान कर देताहै.किसी को माफ़ करके आप उस दायरे से ख़ुद को आज़ाद करते हैं. और
आज़ादी क्या होती है हर कोई जानता है. आपको एकदम से ख़ुशी महसूस होगी आप ख़ुद को कहीं ज़्यादा मज़बूत पातेहैं.सारा ज़हनी तनाव ग़ायब हो जाता है. नई ताक़त और नया जोश आपमे आ
जाता है.
मैं
एक गुज़रा हुआ हूँ कल
मुझे
ढूंढने की ज़हमत ना करना
मेरा
आशियाना तू पा ना सकेगा
वक़्त
ने जो बदला मिजाज़
बदल
लिया मौसम ने भी ठिकाना
तेरे
इर्द-गिर्द है शोर बहोत
मेरी
खामोश सदाएँ सुन ना सकेगा
अरमान
आँखों में हैं दफ़न
मेरी मजबूरियों को पढ़ ना सकेगा
मुझे
उसूलों से है मेरे इश्क़
पा
कर भी मुझे पा कभी ना सकेगा
कायदों
में बसती है ज़िन्दगी
पाकर
साहिल भी,मंज़िल पा ना सकेगा
दायरे
मेरे भी हैं, हदें तेरी भी
ताल्लुक़
की क़ीमत चुका ना सकेगा
शाख़ बदली तूने,वक़्त बदलते ही
घौसला
मैंने भी नया लिया बना
तू मुझे अब तलाश ना कर सकेगा
जो
गुज़र गया वो नहीं बदला
कल नहीं,बदला तो आज है
ये हक़ीकत दुखती रग़ से छुपा ना सकेगा
ये हक़ीकत दुखती रग़ से छुपा ना सकेगा
No comments:
Post a Comment