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Tuesday 15 December 2015

becheniyan बेचैनियाँ



दुनिया की तरक्क़ी का राज़ यही है, की जो कुछ मयस्सर है उससे एक क़दम आगे का पाने की ख़्वाइश और कोशिश की जाये. यानि जो क़ायम है अभी, दुनिया में कुछ लोग पाकर सुकून से रहते हैं. सभी लोग लेकिन इस हासिल को चैन से क़ुबूल नही कर पाते. जो है अभी, उससे बढकर उन्हें चाहिए होता है. यही बढकर चाहिए वाली बात, दुनिया को आगे और आगे तरक्की की राह पर ले जाती है. जो आज नया है वो कल पुराना और पिछला बन जाता हैं. बढते रहना ही ज़िन्दगी की निशानी है. बेफ़िक्री से जीने वाले एक मुक़ाम पर थम से जाते हैं. बेचैन लोग तरक्की कर जाते हैं.
ख़्वाब देखे जाते हैं. उन्हें मुक्कम्मल करने की कोशिश की जाती है. जब तक वो पूरे नही होते ,तब तक उनके दिल-ज़हन में एक बेचैनी,एक बेक़रारी मौजूद रहती है. इसे दूर करने की कोशिश की जाती है,तभी ये बेचैन और बेक़रार इन्सान नई से नई ईजाद दुनिया में कर लेते हैं.

बेचैनियाँ और बेताबियाँ मिलती रही
तनहाइयाँ महफिलों में मिलती रही
ख़ुशियों से भरी सुबह भी मिलती रही
ख़ुमारी  से भरी रात भी मिलती रही
अँधेरा गुज़रा जब नज़दीक से होकर
रौशनी भी रफ्ता-रफ़्ता मिलती रही
आफ़ताब हो या माहताब फ़लक पर
क़ुदरत भी इन्हें दिखाती-छुपाती रही
रफ़्तार से चलते जाना है ज़िन्दगी
वक़्त की रफ़्तार याद दिलाती रही
मै वक़्त हूँ मुझे ना भूलना कभी
लौटकर आना मेरी फ़ितरत नहीं
हकीक़त की ख़्वाबों से दोस्ती रही
जज़्बात की अलफ़ाज़ से बंदगी रही
इबादत तेरी ज़िन्दगी मेरी आदत नहीं
सवालों में सारी उमर तू  हासिल रही

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