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Wednesday 23 December 2015

mera haq मेरा हक़



यूँ तो इस दुनिया में अक्सर किसी और की ज़िन्दगी में दख़ल का हक़ सा समझते हैं लोग. जबकि आपकी ज़िन्दगी पर सिर्फ़ आपका हक होता है. सारे फ़ैसले आपके होते हैं. सारे ख़्वाब आपके होते हैं. ना तो किसी और ने उन्हें अपने हिसाब से तय करना चाहिये और ना आपको कोई बहाना या सफ़ाई पैश करने की ज़रूरत है कि कोई फ़ैसला या कोई काम  आपने क्यों किया या क्यों करना है. वजह आपको मालूम है ,बस! यही काफ़ी है. आप पर आपका हक़ है. आपके वक़्त पर आपका हक़ है. आपके ख़्वाबों पर आपका हक़ है. आपकी ज़िन्दगी पर आपका हक़ है. कोई और कोई हक़ नहीं रखता कि आपके वक़्त को बर्बाद करे. आपकी इज्ज़त जो आप ख़ुद को देते हैं वो आपसे ले, या चाहे की उसे दी जाये, वो कोई भी हो इस बात का क़तई हक़दार नहीं होता. आप किससे प्यार करें, किससे मोहब्बत ना करें,किसकी इबादत करें. इस फ़ैसले पर भी सिर्फ़ आपका हक़ होता है. ना तो इस बात के लिए किसी की इजाज़त की ज़रूरत है और ना किसी को वजह बताने की ज़रूरत है.
अपनी ज़िन्दगी अपने तरीक़े से जीना आपका पहला हक़ है,ख़ुद के लिए,ख़ुद का एक फ़र्ज़ है. उसे दूसरों के हिसाब से दूसरों की ख़ुदग़रज़ी की ख़ातिर ना छोड़ें.
ज़िन्दगी ख़ुशग़वार जियें. जितना आप दूसरों की बात मानेंगे वो
उतना ही आपके हर फ़ैसले में दख़ल देंगे. सच ही है सुनने वाले
जितना सुन कर मानेंगे उतना ही कहने वाले कहेंगे. कमाल कहने
वालों का नहीं सुनने वालों का होता है.


सुनने वालों का कमाल है
कहने वाले तो बहोत कहते हैं

ठहरे हुए पानी सा रिवाज़ है
मुझे ये तरक्की-पसंद कहते हैं

समझो जो ख़ामोशी में हैं
मायने अल्फ़ाज़ के तो बहोत होते हैं

दिल के अरमानों का कमाल है
वहम पर यक़ीन करने को कहते हैं

जहाँवाले यूँ मसले आसान करते हैं
कभी भूला नहीं,उसे याद कर कहते हैं

ये पाक़ीज़ा तेरी मोहब्बत का कमाल है
बा-वज़ू हम ख़यालों में तेरे डूबते-उभरते हैं


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