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Friday 27 November 2015

dhup chhanw




हर इंसान की ज़िन्दगी में  ख़ुशी और ग़म साथ-साथ चलते रहते हैं. इन्सान को ख़ुशी में इतना भी नहीं खो जाना चाहिए की ग़म की आहट उसे सुनाई ना दे. ग़म में भी उसे इतना हौसला रखना ही चाहिए की उस ग़म या मुश्किल से निजाद पाने  के लिए उसका ज़हन उसका साथ दे पाए. उसे इस बात का यक़ीन होना ही चाहिए कि हर मुश्किल का हाल होता है. वक़्त एक सा नहीं रहता. हर रात की सुबह होती ही है. सबसे ज़्यादा उसे ख़ुद अपने-आप पर यक़ीन होना चाहिए, कि चाहे कुछ भी हो, वो हर बात,  हर सवाल, हर मुश्किल का नतीजा अपने हक में करने की क़ाबिलियत रखता है. फिर कभी कोई भी,कुछ भी उसका कुछ नहीं नुक्सान कर सकता है. हर जगह वो क़ामयाबी ही पायेगा. कौशिश और हौसला साथ में ख़ुद पर यक़ीन यही वो जादू की छड़ी होती है जो इन्सान अपने साथ रखे तो ख़ुशी और क़ामयाबी हमेशा उसके इर्द-गिर्द ही नज़र आती हैं

मुझे धूप मिली, या मिली घनी छाँव

मिला जब,हर लम्हा नया सुकूं मिला

पा कर फ़ैसले ज़िन्दगी के मेरी

मुझे लम्हा-लम्हा क़रार मिला

बदले मौसम जब बहार आई

जिंदगी रफ़्ता-रफ़्ता मुस्काई

मौसमे बहार से तो पूछे कोई

धूप या छाँव क्या पसंद आई'

धूप रफ़्ता-रफ़्ता जीना सिखा गई

पगडंडी पर धूप की छाँव मिली

करवट बदल ख़िज़ां बहार लाई

रात ने गुज़र कर सहर दिखाई




Friday 20 November 2015

afsana zindgi ka


हमेशा से ही किसी मिसाल को क़ायम करना  किरदार और शख़्सियत को क़ामयाब और मुकम्मल बनाने का एक ताक़तवर ज़रिया माना जाता रहा है. कभी पिछली नसल के बहादुर लोगों को, कभी ज़हीन लोगों को, कभी तरक्की पसंद लोगों को. याने हर मौज़ू में आगे बड़ने, आगे रहने वालों को अपना मॉडल बना कर तरक्की की राह चुनने की कौशिश इंसान करता आ रहा है.अच्छी बात है ये. लेकिन कई बार ऐसा भी हो जाता है, कि किसी और की ख़ासियत अपनाते-अपनाते हम अपना ख़ुद का वजूद खो देते हैं. जो कुदरती ख़ासियत ख़ुदा ने दे कर हमें नवाज़ा है ,उसे ही हम कहीं खो देते हैं. किसी और का सिर्फ़ अक्स बन कर रह जाते हैं. हम जान ही नहीं पाते कभी कि हम क्या हैं? हमारे अरमान क्या हैं? हमारी सोच क्या है और हम चाहते क्या हैं? जब तक इस हक़ीकत से हम रु-ब-रु होते हैं तब तक काफ़ी देर हो चुकी होती है. पर ये क्या कम है, कि हम अपने आप को जान लेते हैं. पहचान लेते हैं,और चूँकि अपनी अब तक की जिंदगी की कहानी आपने ख़ुद लिखी है. उसके किरदार को आप ख़ुद जी रहे हैं, तब अपने आपको जैसा आप हैंजैसा आप चाहते हैं. वैसा ही लिख कर बना सकते हैं. ये कोई मुश्किल काम नहीं.

राज़-ऐ-ज़िन्दगी में सदा बंद
एक किताब जो रही सदा बंद
वर्क दर वर्क खोला जो आज
लगे हर्फ़ कभी अंजाने,
कुछ लफ़्ज़ पहचाने-जाने
ख़ुद को थोड़ा और जाना
नया सा कुछ खोया पाया

यूँ भी कभी होता है
पलपल का हिसाब कौन देता है
यूँ पलटते वर्क देने लगे गवाही
एक बंद थी अंधेरों में गली
नज़र ना वो आई
मसरूफ़ रहे या थी बेपरवाही
कई मोड़ आ कर गुज़र गए
गुज़रे मंज़र वो थे गली के पार
ना जाना क्यों हुए ना उनसे दो-चार
ख़ता ख़ुद की या रास्तों की भरमार

आज मुड़ के जो देखा 
जो गुज़रा ज़माना था
ना थी सदा कोई ना आई
पलटते वर्कों ने दी गवाही
खुली किताब फिर बंद पाई
है ख़ता तो ख़ता ही सही
जीने का मेरे अंदाज़ यही
खोना है ये, ये ही पाना है
मेरी ज़िन्दगी का यही अफ़साना है

Thursday 5 November 2015

asli nakli chehra




अगर इन्सान की ज़िन्दगी में कोई बड़ी परेशानी आ जाती है तब उस परेशानी की वजह से वह सबसे नाराज़ रहता है. यहाँ तक कि ख़ुद अपने आप से भी.किसी भी बात का ख़ुशनुमा पहलू उसे नज़र नहीं आता. हर बात उसे अपने ख़िलाफ़ ही नज़र आती है. ये एक ऐसा वक़्त होता है जब उसे जज़्बाती तौर पर अक्सर किसी सहारे की भी ज़रूरत पड़ जाती है. अक्सर यूँ भी होता है जिससे हम सहारे की उम्मीद कर रहे होते हैं,वो भी किसी मुश्किल में मुब्तला होता है , और आपका वो सहारा नहीं बन पाता जो आपको चाहिये होता है. ना आप उसके वो सहारे बन पाते हैं, जिसकी उसे ज़रूरत होती है. हक़ीकत कुछ यूँ होती है की ज़्यादातर लोग अपनी-अपनी परेशानियों और उलझनों में उलझे रहते हैं. नतीजा कुछ यूँ होता है कि अपनी उलझन एक-दूसरे को बताते भी नहीं हैं,मदद भी नहीं मांगते आपस में, और नाराज़ भी हो जाते हैं एक-दूसरे से.जबकि ऐसा होना नही चाहिये.कम-से-कम अब तो आपस में बात कर के सारी ग़लतफ़हमियों को दूर कर लेना चाहिए.जब एक दूसरे की हक़ीकत से वाकिफ़ हो जाएँगे तो जिंदगी आसान हो जाएगी,क्योंकि उम्र भर एक दूसरे को देख कर अंदाज़ लगते रहना एक दूसरे के ख़यालात का. सही बात नहीं.


वो मिलते हैं हमसे ले-कर नकली चेहरा
वाकिफ़ हैं जिनकी असली सूरत से हम
लाख कोई चाहे फ़ितरत अपनी छुपाना
छलक जाता है असलियत का पैमाना
छुपा ले चाहे राज़ समंदर की गहराई
लहर कोई बहा लाती होगी सच्चाई
आईना-ऐ-दिल में नज़र आती होगी
कलाई उतरी सूरत सताती तो होगी
वाकिफ़ हैं उनकी असली सूरत से हम
हक़ीकत  कभी मलाल दिलाती तो होगी
ठहरा-ठहरा ज़ख़्म कोई रुके साहिल पर
ऐसे तूफ़ान दिल की ज़मीं लाती तो होगी