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Thursday 9 July 2015

ख़त अधूरा सा कोई


बाज़ दफ़ा ज़िन्दगी आपको कुछ ऐसे मोड़ पर खड़ा कर देती है कि आप मौजूदा दौर में खड़े हो कर माज़ी की ख़ुशनुमा यादों से सराबोर हो कर रह जाते हैं. उन लम्हों को जैसे दोबारा जीने लगते हैं. ये एक ऐसा पल होता है जब आपकी नज़रों के सामने सब कुछ तैरता हुआ सा गुज़रने लगता है. आपकी परवाज़ आपसे कहती है, थोड़ा रुको,थोड़ा सा थमो. इस तेज़ चलती ज़िन्दगी में ऐसे पल जो सुकून, जो ख़ुशी दे कर जाते हैं उन्हें बयाँ करना जैसे नामुमकिन सा होता है. कुछ भूले-बिसरे ख़्वाब, कुछ बिछड़ी सी यादें , आपका ज़हन उनके सिरे जोड़ने लगता है. सारी क़ायनात जैसे थमी सी लगती है.ऐसी पुरनूर रौशनी में घिर जाता है इन्सान कि उसके आर-पार कुछ दिखाई नहीं देता. ऐसे लम्हात ज़िन्दगी को एक नई ताक़त, एक नया जोश दे जाते हैं, और इन्सान हल्का सा महसूस करने लगता है, जैसे हवाओं में उड़ने सा लगता है, जैसे आसमानों पर चलने लगता है.

ख़त अधूरा सा कोई ,या हो अधूरा ख़्वाब
ज़िन्दगी में यक-ब-यक आ जाते हैं याद
आ जाते हैं हमें दिलाने कुछ अधूरी याद 

उम्मीदों से भरकर,जज़्बातों से हो कर लबरेज़
चाहा था इन्हें,और चाहा था,करना इन्हें मुक़म्मल 

चाहा था कभी जीना इनके साथ, हर वो लम्हात
सोचा था करना साथ इनके हवाओं में परवाज़

आज पूछते हैं ये सवालात ऐसे एहसासात के साथ
है शामिल शिक़ायत भी, शिक़वा भी है थोड़ा साथ
कुछ रूठे से ये हैं हमसे, एक ख़ुमारी भी है साथ

सोचने लगे हम भी क्या ग़फ़लत की थी बात
कब इन्हें भूले हम, कहाँ छूटा इनका साथ

याद कर धड़कनों में भी रवानी आई
कुछ थोड़ रुक-थम सा जाने के बाद
ठंडी एक साँस गुज़री सीने के पार

ये तो मंज़िल इनकी ना सोची थी जो है आज
क्या ये मुमकिन है, इन्साफ़ अब हो इनके साथ

अधूरे ही सही गुज़रते हैं जब भी ज़हन में आज
वजूद की अपने देते गवाही यक़ीन भी होता साथ

ये अधूरे ख़त या हों आधे ख़्वाब या आधे जज़्बात

छोड़ जाते हैं ख़ला में साथ हमारे बस एक काश!


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