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Sunday 15 March 2015

मेरा सरापा पूछता है अक्सर तन्हाई में


कई मर्तबा हालात ऐसे हो जाते हैं, जब इन्सान हैरान-परेशान हो जाता है. ज़माने से तो उसे बेशुमार शिक़ायतें होती ही हैं. अपने आपसे भी ख़फ़ा हो कर जीता है.ऐसे हालात में ख़ुद अपना अक्स भी उसे पराया नज़र आता है.यहाँ तक कि उसे आईने से भी शिक़ायत होती है कि उसका अक्स उसे अधूरा क्यों दिखाई देता है. ज़िन्दगी में हालात चाहे जैसे हों, हमें डट कर उसका मुक़ाबला करना चाहिए. शिक़ायतें करने से, ग़मज़दा रहने से, मुश्किलों से दूर भागने से कुछ हासिल नहीं होता है. जब तक हम हालात को बदलने की कौशिश नहीं करेंगे तब तक हालात बदलेंगे कैसे? जैसे हालात हैं उससे समझौता कर लेना समझदारी नहीं होती है. हालात में ढल जाना नहीं हालात को अपने जैसा बनाना समझदारी की बात होती है. अपने आप में कमियाँ नहीं निकलना चाहिए . अपनी क़ाबलियत को अपने आप से ढूंड निकलना चाहिए और उसे अपनी ताक़त बना कर मुश्किल से मुश्किल दौर को हरा कर ज़िन्दगी को ख़ुशहालबना कर ज़िन्दादिली के साथ ख़ुशी-ख़ुशी जीना चाहिये.

मेरा सरापा पूछता है अक्सर तन्हाई में
आईने में नज़र आता तो हूँ मै
क्यों लगता नहीं पर ये हूँ मै
अक्स है मेरा तो सिर्फ़ ये
दिखता ज़रूर मुझसा है ये
क्यों फिर मेरे मुक़ाबिल है ये
सीधा सा हूँ मै और उलट है ये
मै हो कर भी मै नहीं हूँ ये
मेरा सरापा अक्सर पूछता है तन्हाई में
मुझसे इसमें ख़यालात कहाँ
मेरे जैसे इसमें जज़्बात कहाँ
अक्स है मेरा तो सिर्फ़ ये
सच हूँ मै और झूठ है ये
क्यों इसमें कोई एहसास नहीं
हँसी के पीछे के दर्द क्यों इसके साथ नहीं
मेरा सरापा अक्सर पूछता है तन्हाई में
क्यों मै हो कर भी मै नहीं हूँ ये
बेजान अक्स है ये सच नहीं ये
ना तो दिल है इसमें, और रूह भी नहीं
नज़र आता है मुझसा मगर
मेरी तो इससे जान-पहचान नहीं
मेरा सरापा पूछता है अक्सर तन्हाई में
लबों की मुस्कान आती है नज़र
लहूलुहान दिल मगर आता नहीं नज़र
मुझसी शक़ल है पर नहीं हूँ मै
फिर क्यों आईने में नज़र आता हूँ मै
मेरा सरापा पूछता है अक्सर तन्हाई में
कहाँ खो दिया मुझे गहराई में
ना तो ढूंड पाओगे औरों की परछाई में
ना इस जहाँ की रानाई में
पाओगे ख़ुद को अपनी ही किसी अच्छाई में
अपने दिल की किसी सच्चाई में

सरापा ढूंड ही लेगा ख़ुद को भीड़ और तन्हाई में

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