अगर इन्सान की ज़िन्दगी में कोई बड़ी परेशानी आ जाती है तब उस परेशानी की वजह से वह सबसे नाराज़ रहता है. यहाँ तक कि ख़ुद अपने आप से भी.किसी भी बात का ख़ुशनुमा पहलू उसे नज़र नहीं आता. हर बात उसे अपने ख़िलाफ़ ही नज़र आती है. ये एक ऐसा वक़्त होता है जब उसे जज़्बाती तौर पर अक्सर किसी सहारे की भी ज़रूरत पड़ जाती है. अक्सर यूँ भी होता है जिससे हम सहारे की उम्मीद कर रहे होते हैं,वो भी किसी मुश्किल में मुब्तला होता है , और आपका वो सहारा नहीं बन पाता जो आपको चाहिये होता है. ना आप उसके वो सहारे बन पाते हैं, जिसकी उसे ज़रूरत होती है. हक़ीकत कुछ यूँ होती है की ज़्यादातर लोग अपनी-अपनी परेशानियों और उलझनों में उलझे रहते हैं. नतीजा कुछ यूँ होता है कि अपनी उलझन एक-दूसरे को बताते भी नहीं हैं,मदद भी नहीं मांगते आपस में, और नाराज़ भी हो जाते हैं एक-दूसरे से.जबकि ऐसा होना नही चाहिये.कम-से-कम अब तो आपस में बात कर के सारी ग़लतफ़हमियों को दूर कर लेना चाहिए.जब एक दूसरे की हक़ीकत से वाकिफ़ हो जाएँगे तो जिंदगी आसान हो जाएगी,क्योंकि उम्र भर एक दूसरे को देख कर अंदाज़ लगते रहना एक दूसरे के ख़यालात का. सही बात नहीं.
वो मिलते हैं हमसे ले-कर नकली चेहरा
वाकिफ़ हैं जिनकी असली सूरत से हम
लाख कोई चाहे फ़ितरत अपनी छुपाना
छलक जाता है असलियत का पैमाना
छुपा ले चाहे राज़ समंदर की गहराई
लहर कोई बहा लाती होगी सच्चाई
आईना-ऐ-दिल में नज़र आती होगी
कलाई उतरी सूरत सताती तो होगी
वाकिफ़ हैं उनकी असली सूरत से हम
हक़ीकत कभी मलाल दिलाती तो
होगी
ठहरा-ठहरा ज़ख़्म कोई रुके साहिल पर
ऐसे तूफ़ान दिल की ज़मीं लाती तो होगी
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