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Friday 11 December 2015

jazbaat




इंसान जज़्बाती होता है.जज़्बाती होने का मतलब दुनिया की हर शय को महसूस करने की ताक़त होना. जज़्बात की ज़रूरत को समझना  भी ज़रूरी सी बात है,क्योंकि यह आदमज़ात को एक बेहतर इन्सान बनता है. क्योंकि अगर आप जज़्बाती हैं ,तब अपने साथ-साथ औरों के जज़्बात समझने की क़ाबिलियत भी रखेंगे, चाहे ज़ाहिर ना हो तब भी. अक्सर रिश्तों के मामले में ये बेहतर साबित होता है. अगर जज़्बाती इन्सान को उसकी कमी बताई जाये तो वो ज़रूरत के मुताबिक अपने आप को बदलने की कोशिश करता है,और वो बेहतर होता रहता है. ग़ैरजज़्बाती इन्सान किसी के लिए और किसी के कहने पर क्यों बदलेगा?
वक़्त के साथ जो बदलेगा नहीं. अपने आप में सुधार की ना तो
ज़रूरत समझेगा और ना वो  ख़ुद में कोई सुधार करेगा तो  वो
बेहतर कैसे बन पायेगा? इसलिए जो जज़्बाती होने को   ग़लत  मानते हैं  और जज़्बाती लोगों का मज़ाक़ उड़ाते हैं,वही,कहीं ना-कहीं थोड़े से ग़लत हैं. हाँ ज़्यादती हर बात की ग़लत होती है, ये माना. लेकिन जज़्बाती होना ग़लत है, ये बिलकुल सही नहीं है. जज़्बात ही तो इंसान को इंसान  बनाते  हैं.


जब यूँ ही कहीं,जब यूँ ही कभी

रिसने लगती है ज़िन्दगी कभी

सिसकते जज़्बातों के दरीचे भी

बुझने सारी चिंगारियां  लगती 

ऐसे में दहकने लगते अल्फ़ाज़

क़लम में आती है तभी रफ़्तार

पैनी सी हो जाती  इसकी धार

क्या होते सारे ऐसे एहसासात

जब होती हैं सारी बेड़ियाँ भी

सारे बंधन होते हैं मौजूद वहीँ

माएने मौजूदगी इनकी रखती नहीं

क़लम से टपकने लगते शोले भी

सारे अल्फ़ाज़ और ख़यालात भी

ये शुरुआत होती अच्छी कोई

या कहलाती ख़ात्मा-ऐ-बुराई

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