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Monday 7 December 2015

shiqayat-e-qufr kyu



ज़िन्दगी में चैन और खुशियों के पल बढाने के लिए,ज़िन्दगी को ख़ुशनुमा बनाने के लिए,रोज़ हमें नए-नए इम्तेहान से गुज़रना चाहिए.गलतियाँ होती भी रहें तब भी. ग़लतियों से सीखने के लिए तय्यार रहना चाहिए. वेसे ग़लत कम करना आसान होता है.इसलिए मुश्किल से मुश्किल काम कर के ख़ुद को मुश्किल में डालते रहना चाहिए.रास्ते में मुश्किल ज़रूर आएगी लेकिन हम जानते हैं कि हम सही हैं. फिर कोई और कुछ भी समझे. 
अगर आप नहीं जानते खुशियाँ क्या हैं, क़ामयाब ज़िन्दगी क्या है,तो एक बार फिर से दोबारा गौर कीजिये.खुशियों तक पहुँचने के क्या राज़ हैं?
आपके अपने को जब आगे बढने का कोई रास्ता दिखाई ना दे,वो उदास हो हताश हो,तब आपको अपना हाथ सबसे पहले मदद केलिए बढाना चाहिए.उसके साथ इम्तेहान में ख़ुद भी शामिल हो जाना चाहिए. तब आपको मालूम होगा कि हमें किन चीज़ीं से ख़ुशी मिलती है.
पहले जो बीत गया वो बीत गया उस पर किसी का कोई बस नहीं. इसलिए उसे भूल कर आगे बढ़ जाना चाहिए. कई बार हर चीज़ बिखरी और बे-तरतीब दिखाई देती है,कुछ समझ में नहीं आता है. उस वक़्त उस बात को, उस वजह को सही तरीक़े से देखने के लिए, एक क़दम पीछे हट कर देखना और सोचना चाहिए. सही फ़ैसला लेने में आपको आसानी होगी. ख़ुश रहने के इम्तेहान आपको ख़ुद लेना हैं और उसमे क़ामयाब आप अपने ही तरीक़ों से हो सकेंगे, किसी और के नक्श-ऐ- क़दम पर चलने की आपको ज़रा भी ज़रूरत नहीं.   

माना बुलंदी पर हैं मसले मेरे
दुश्वारी जो  हैं मेरी हैं पैदाइश 
तुझसे शिकायत-ऐ-कुफ़्र क्यों करूँ
नादानी मेरी इब्लीस के सर क्यों करूँ
मंज़िलें मेरी मुझे हासिल है करना 
तेरे ज़िम्मे हर उम्मीद क्यों करूँ
सब तो कर चुका तू मेरे हवाले
फिर शिक़ायत-ऐ-कुफ़्र क्यों करूँ
तूने  दे रखा खुशियों का खज़ाना है
उदासियाँ पाल लेना आदत है मेरी 
तुझसे शिक़ायत-ऐ-क़ुफ़्र क्यों करूँ
है उफ़क़ पर सहर,लायेगा उसे सूरज
क़दम माना डगमगा रहे ज़रा मेरे
रास्ते मुश्किल भी सारे मैंने  चुने
तुझसे शिक़ायत-ऐ-क़ुफ़्र क्यों करूँ


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