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Saturday 26 December 2015

ye zindagiये ज़िन्दगी



यूँ तो लिख देना, कह देना शायद आसान होता है, लेकिन उस पर ख़ुद अमल करना मुश्किल होता है. क़ामयाब वो नहीं होता जो अभी आपको बुलंदी पर नज़र आ रहा होता है.असल में जिसने पहले नाक़ामी पर जीत हासिल की होती है वही आज क़ामयाब होता है. जैसे  कहा गया है कि बहादुर वो नहीं होता जिसे डर नहीं लगता ,बल्कि बहादुर वो है जो डर पर जीत हासिल कर लेता है. इसी तरह क़ामयाबी का होता है. पिछली आपकी हार या आपकी जीत उससे  आपके हौसलों पर कोई फ़र्क़ नहीं पड़ने देना चाहिए. पिछला सब भूल कर अभी यानि इस वक़्त जब आगे बढ़ रहा हो तब अपनी सबसे बहतरीन ताक़त का इस्तेमाल करे.  दुनिया में सभी दर्द के, नाक़ामी के, तकलीफ़ के कभी ना कभी शिकार होते ही हैं.ग़लतियाँ भी सभी से कभी ना कभी होती ही हैं. अक्सर इन लम्हों में आपके अपने काफ़ी मददगार साबित होते हैं.दुःख,तकलीफ़ या परेशानी को लिख कर भी आप एक नई रौशनी पा सकते हैं. नया रास्ता ढूंढ सकते हैं. हाँ अपने दर्द, अपनी तकलीफ़ या अपनी हार को, अपना औज़ार बनाएँ,अपनी ताक़त बनाएँ ना कि अपनी कमज़ोरी.


खामोशियाँ मेरी चीख़ती हैं
आवाज़ों को मिले ना अल्फ़ाज़ जब
गुमसुम से सन्नाटे रोते हैं
दिल में हों आँसू,हँसी चेहरे पर जब
ज़िंदगी के गीतसिसकते हैं
क़िस्मत की क़लम टूट जाती जब
हौसला मेरा लहुलुहान होता है
मिलकर मंज़िल खो जाती जब
ज़िंदगी झूठ पर मुस्कुराती है
हक़ीक़त से प्याले लबरेज़ हो जब
ज़िद्दी परिंदा उड़ जाना चाहे

सारी उम्र लिखा जो ख़त,खो जाए जब

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