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Friday 23 January 2015

हो गए जब फ़ना औरों के लिए

relationship compromises

जब कभी ज़रुरत आन पड़ती है ज़िन्दगी में समझौता करने की,तब हालात से समझौता  करने के लिए, कईं मर्तबा ख़ुद को खोना भी पड़ जाता है. चैन और सुकून पाने के लिए और कईं बारदूसरों की ख़ुशी के लिए अपनी हँसी क़ुर्बान करना पड़ जाती है. उस पर यूँ केउस दर्द को बयाँ होने से भी रोक लिया जाना ज़रूरी होता है .जब आप इस मोड़ से कभी कबार गुज़रते हैं तब तो ठीक है. हमेशा के लिए इसे अपनी आदत में शुमार कर लेना अच्छा नहीं होता. क्योंकि तब इसे आपकी कमज़ोरी समझ कर सब  हमेशा आपका और आपके जज़्बात का फ़ायदा उठाने की कौशिश मेंतैयार रहते हैं. तो आपका थोड़ा संभल जाना लाज़मी है. हर दफ़ा ख़ुद को खोना, हर मर्तबा एक नए इम्तेहान से गुज़रना, इस खौफ़ से कि कोई और परेशान ना हो, किसी और को तकलीफ़ ना हो. चाहे फिर आप ख़ुद क़तरा-क़तरा हो कर बिखर जाएँ. उस पर तुर्रा यह कि किसी को ख़बर भी नहीं होने पाए. कहाँ का इंसाफ़ है ये? जितना ख़याल आपको है औरों की ज़रुरत और ख़ुशी का, उतना अगर औरों को आपका नहीं है, तब थोड़ा सा मतलबी आप भी हो जाएँ तो बेहतर होगा. सबके लिए आप ईमानदार रहते हैं तो ख़ुद की बारी आने पर खुदगर्ज़ क्यों हो जाते हैं? बेवजह क्यों सज़ा पाते हैं? अपनी इज्ज़त और अपनी ख़ुशी जब ख़ुद आपके लिए मायने रखेगी, तभी दूसरे आपके वजूद को जानेंगे और आपको वह सब देंगे जिसके आप हक़दार हैं.

हो गए जब फ़ना औरों के लिए,

किसने चाहा अरमान तुम्हारे हों ज़िन्दा

किसने चाहा हों दर्द तुम्हारे बयाँ,

वजूद तुम्हारा क्या है किसी से क्यों पूछो?

औरों के लिए हरदम मरने को तैयार,

ख़ुद  के लिए कभी तो जी कर देखो.

परवाह,प्यार में हो जाती फ़ना  एक बूँद,

थोड़ी सी तपन हो या तेज़ हो धूप,

कम करने को मुश्किल इनकी,

तबाह कर देती है ज़िन्दगी ख़ुद की.

मौसम होने लगे जो सर्द तो जाती है ये जम,

बादलों में होने लगे गर रवानी,

ले जाते हैं साथ इसे बहा कर.

क्या पाती है वजूद अपना खो कर?

ख़्वाहिश इसकी कब मौसम ने पूछी ख़ुश हो कर?

ये बात प्यास बुझने पर किसने सोची?

इक-इक बूँद थी कितनी प्यासी?

साँस थम जाती है सीने की तब,

आस टूट जाती है जीने की जब.

थम जाता है रगों में लहू तब,

सर्द हो जाते हैं एहसास जब.

रुक जाती है ज़िन्दगी तब,

कारवाँ बदल ले अपनी मंज़िल जब.

रुकी-थमी सी किसी की ज़िन्दगी,

मंज़िल की आहो पुकार किसने सुनी?

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