ये दुनिया है. कैसी है ये दुनिया .कभी तो आती है हँसी, और कभी आता है गुस्सा. कोई यहाँ खुश है. कोई यहाँ है रंजीदा. हर कोई है यहाँ अपने आप में मसरूफ़, अपने लिए ज़िन्दा. ख़ुद को क़ायम रखने के लिए कभी किसी को कर दिया है तबाह, तो कभी किसी को दिया है गिरा. रास्ते में जो आया है फूल तो उसे बेवजह दिया है कुचल. चुभने को तो ज़मीन पर कंकर भी हैं और कांटे भी. पर जहाँ वालों ने एक दूसरे को नज़रों के, ज़बानों के और हवस के नुकीले नश्तरों से किया है लहूलुहान, और काटा है, यक़ीन की तलवार से भी, कई सारों को. मुश्किल तो ये है ऐ जहाँ के मालिक खून के रिश्तों पर भी इन्होने पोत डाली है कालिख . थोड़ा सा पैसा हो, थोड़ी सी हो ज़मीन,छोटा सा रुतबा हो या फिर छोटा सा शरीर. सारा जहाँ इसे पाने के लिए है बेताब. इसके लिए चाहे जो कुछ भी ये कर डालें. कहाँ है इन सब के पास थोड़ा भी ज़मीर.
ना जाने कैसे कैसे हो गए हैं हालात..
ना ही ख़ुशी में मचलते हैं जज़्बात.
अब ना तो किसी ग़म में सिसकते हैं एहसास.
ना तो तन्हाई में ना रिहाइश में,
हर जगह अजनबी से हालात.
क्यों सब हैं सब से नाराज़,
मोसम ने जब बदल लिए मिजाज़,
इन्सान से कैसे करें उम्मीद होंगे सही हालात.
तशद्दुद कैसे आया दिलों में,
कैसे दिखावा बसा ज़हन में,
कैसे नफ़रत फैली जहाँ में,
कैसे बिखरती गई जलन हवा में,
तशनगी ज़माने की, तशद्दुद दिलों का.
और हो चली ज़ज्बों से वीरान ये दुनिया.
कैसे लायें दिलों ज़हन में उम्मीद के ख्याल.
कैसे अब कैसे जलाएं रोशनी के दिए और चराग .
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