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Thursday 8 January 2015

हमसफ़र


ज़िन्दगी जीने के लिए ज़रुरत होती है, एक सही हमसफ़र की. हालाँकि ये एक मुश्किल कम है, पर तलाश करता है जहाँ का हर इन्सान. कुछ लोग अपने हमसफ़र को ख़ुद जैसा बनाने की कोशिश में लगे रहते हैं. कुछ अपने आप को अपने साथी जैसा बनाने में  मशगूल रहते हैं. उन्हें पता नहीं है क्या  ज़मीन का मिजाज़ दरख़्त से जुदा होगा तभी जिंदा राह पायेगा वरना वह भीज़मीन ही बन जायेगा तब क्या चल पाएगा दुनिया का सफ़र ? चाँद और किरण का मिजाज़ भी अलग-अलग होताहै.और भी कई मुख्तलिफ़ सी चीज़ें हैं दुनिया में जो साथ-साथ राह कर एक मिसाल है.  अगर एक जैसा होना सहीहोता तो ख़ुदा सबको जुदा-जुदा क्यों बनाता?जो जैसा है उसे वैसे ही अपनाना ही सही तरीका है. और ज़िन्दगी जीने का मज़ा भी इसमें ही है, कि जुदा मिजाज़ पर रंजीदा होने के बजाये उसे खुशदिली से अपना कर सुकून पायें


अक्स आइने में वक़्त के देख कर

कुछ ठिठक से गए हैं ज़रूर

है तो अक्स जुदा सा ही

हमदम नहीं हमसाया नहीं

हाँ हमखयाल ज़रूर है

कुछ समझाइश हैं, कुछ जवाब हैं,कुछ शान है

रास्तों के सही निशां और ज़िन्दगी की मुस्कान है

जैसे किसी दरख़्त की ठंडी घनी सी छांव है

ज़िन्दगी की दहकती धूप में हँसी शाम है

हैरान हैं ये सोच कर अब से पहले

इससे इस तरह कैसे हुई नहीं पहचान है                                                                                          


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