ज़िन्दगी की अजनबी राहों पर,चलते-चलते कभी अचानक कोई जानी-पहचानी सी आवाज़ चौका जाती है. आँखों के सामने से कई पुराने मंज़र तैरते हुए गुज़रने लगते हैं.खड़े हुए तो हम उस मौजूदा लम्हे में होते हैं,पर ख्याल बीते हुए लम्हों में परवाज़ करने लगते हैं. अच्छे या बुरे माज़ी के सारे पल आँखों में आँखें डाल कर मुस्कुराने लगते हैं. वो वक़्त भी क्या वक़्त होता है, जैसे ज़िन्दगी के आँगन में पहचाने वक़्त के क़दमों की आहट हो.जैसे उजाले की याद में किरनों की दावत हो. जैसे ज़हन में ख़यालों की गुनगुनाहट हो.उस थमे हुए वक़्त में सारी ज़िन्दगी जी लेते हैं. सारे अलफ़ाज़ खो जाने लगते हैं. ज़िन्दगी की तश्तरी में माज़ी के उजाले की किरन, और किरनों के उजाले साथ-साथ नज़र आने लगते हैं. चाहे अल्फाज़ की लौगत वक़्त के हाथों से छूट जाती है, पर मंज़र सारे उतर आते हैं जज़्बात में. उस ख़ुमारी को कोई नाम नहीं दिया जा सकता बस जिया जा सकता है, महसूस किया जा सकता है.
ज़िन्दगी में माज़ी की आहट
ज़िन्दगी की राहों में वक़्त की आहट.
रौशनी की लौ में खुशियों की चाहत.
खामौशियों की धीमी सी मुस्कराहट.
दिल में एक पुरनूर सी जगमगाहट.
धडकनें भी करने लगी हैं गुनगुनाहट.
गुज़रते वक़्त को थामने की,
ख़यालों में होने लगी सनसनाहट.
उठती झुकती नज़रों की रुकी-रुकी,
थमी थमी सी बातों की शरारत.
यादों में डूबे लफ़्ज़ों की कपकपाहट.
ख़ुशगवार मौसम में बहार की आमद.
जो कह चुके हैं, सुन चुके हैं कई बार.
पर लगती है नई सी हर बार.
एसा लगना इनकी रवानियाँ हैं.
ज़िन्दा होने की यही तो निशानियाँ हैं.
Very nice
ReplyDeletekaraman
ReplyDeleteordu
urfa
kilis
kütahya
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