दोस्ती इंसानियत का एक अहम् हिस्सा है. ख़ुदा की दी हुई एक ऐसी नेमत है, इसे जिसने संभाल कर रखा, उसे दुनिया में खुश रहने की, सुकून से जीएने की वजह तलाश नहीं करना पड़ती.
सच्चा दोस्त सब कुछ उसे मयस्सर करवाता है . वह दोस्ती ही होती है जो कभी तो ख्वाहिशों को पर दे देती है, कभी उड़ते परों को क़तर भी देती है. कभी कभी कुछ दोस्त सारे राज़ों के राज़दार भी होते है. राज़ को राज़ रखने के लिए कभी कभी ये ईनाम के हक़दार भी होते हैं. ज़िन्दगी के अहम् ख़ुशनुमा पल इनके बगैर अधूरे लगते हैं.कभी ये संजीदा हैं,कभी ये मसखरे हैं.कभी शागिर्द हैं, कभी उस्ताद हैं.जब कभी सलाह की ज़रुरत होती है,तो सबसे पहले एक दोस्त ही याद आता है.सच कहा गया है दोस्ती ज़िन्दगी की सबसे बड़ी ज़रुरत होती है.
मैं शमा नहीं हूँ फिर क्यों जलना पड़ा
मैं शमा नहीं हूँ फिर क्यूँ पिघलना पड़ा
रौशनी नहीं हूँ मै फिर क्यों बुझना पड़ा
एहसास हूँ मै इसलिए दर्द सहना पड़ा
मैं शमा नहीं हूँ फिर क्यूँ पिघलना पड़ा
रौशनी नहीं हूँ मै फिर क्यों बुझना पड़ा
एहसास हूँ मै इसलिए दर्द सहना पड़ा
साँसों के चलने का एक अंदाज़ होता है
उन्हें फिर क्यों रुकना पड़ा पड़ा
रविश अपनी मै बदल डालूं क्यों
कभी चाँद सूरज को भी बदलना पड़ा ?
अक्स आइने में चाहे पराया लगने लगा
सितम ये क्या कि आइने को भी टूटना पड़ा
सजदे किये है दिल ने, जबीं ने चाहे कम किये
नतीजे को इबादत के, क्यों सिफ़र होना पड़ा
हाथों की लकीरों पर किया नहीं कभी यकीन
तकदीर से लड़ने के लिए लहू से दिल के
इन्ही लकीरों को जबी पर बनाना पड़ा
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