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Sunday 1 February 2015

कुछ बिखरे हुए अल्फाज़


आप और हम जब कभी कोई बात कहते हैं और कोई बात सुनते हैं. तब कई दफ़ा ये बातें यादें बन कर हमारी ज़िन्दगी में शामिल हो जाती हैं. ये यादें भी दो तरह की होती हैं. ये कभी भी तन्हाई में या भीड़ में ज़िन्दा हो कर हमारे सामने आ जाती हैं. कभी तो ये एक ख़ुशग़वार झौका बन कर दिल को महका जाती है. कभी एक दहकते हुए अंगारे की तरह सारे वजूद को सुलगा जाती है.कभी दर्द के तीरों से छलनी कर जाती हैं. जब कोई याद इतनी तक़लीफ़देह होती है तो उसे यादों के झरोखों में क्यों जगह देना? उसे क्यों याद करना? उसे तो भूल जाना ही बेहतर है. 
जो यादें आपको ज़िन्दगी जीने की एक नई ताज़गी भरी शुरुआत दें, वही यादों का एक सही गुलदस्ता है. यादें ऐसी ही समेट कर रखना चाहिये कि जब भी वे याद आएँ तो ज़िन्दगी रौशन हो जाए ,जगमग हो जाए.

चुन-चुन समेटे हैं, ये कुछ बिखरे हुए अल्फ़ाज़,

महकते हैं हँस कर कभी,

उंगली थामे ले जाते हैं कभी वक़्त के उस पार.

साँस लेते हैं सीने में कभी,

क़दमों को देते हैं कभी सुस्त कभी तेज़ चाल.

ख़्वाबों में बोलते हैं मुझसे,

ख़यालों में करते हैं कुछ खट्टी कुछ मीठी बात.

ये कुछ बिखरे हुए अल्फ़ाज़,

सोचते हैं कभी. कभी ये मुझको ख़ुद समझाते.

रौशन जहाँ से ये ही मिलवाते,

पूछते हैं ये कभी. कभी ख़ुद मुझको बतलाते.

ख़ुशबू की तरह ये हर-सू आ जाते,

गुनगुना कर ये दूर हर ग़म मुझसे हटा जाते.

लहरों की तरह कभी आते कभी जाते,

यादों की वादी से करके आते ये मुझ तक परवाज़.

सोच-सोच कभी दिल ये होता हैरान,

थोड़े थे अभी ये , अभी इतने कैसे ये बढ़ते जाते.

ये कुछ बिखरे हुए अल्फ़ाज़,

ख़ूबसूरत गुलदस्ता बन साथ निभाते,सही राह दिखाते.



एक बात और , ना तो किसी से ऐसे अल्फ़ाज़ कहना चाहिये, और ना ऐसे अल्फ़ाज़ सुनना चाहिये, जो ज़िन्दगी की खुशियाँ और सुकून छीन लें.आपकी बातें और आपकी यादें दोनों ऐसी होना चाहिए, कि जब कभी ठहरे हुए पानी में यादों के कंकर गिरने से आपके ख़यालों, जज़्बातों की लहरों में हलचल हो तो एक ऐसी तरंग उठे जो ज़िन्दगी के तारों को हर बार इस तरह छेड़ जाए कि कई लम्हों तक आपकी मुस्कुराहट आपको गुलज़ार करती रहे.

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