ज़िन्दगी का कारवाँ रफ़्ता-रफ़्ता आगे बढता रहता है. आप और
हम जाने कितने जाने-अंजाने लोगों से मिलते हैं. कुछ को हम भूल जाते हैं. कुछ अच्छी
या बुरी याद बन कर हमारे साथ रह जाते हैं. बाज़ दफ़ा कुछ एसी शख्सियतों से वास्ता
पड़ता है, जो आपको आपके होने का एहसास दिला देते हैं. आपके क़दमों को सही राह भी
दिखाते हैं. आपकी कई उलझनें भी सुलझाते हैं. ये आपको ज़िन्दगी में कभी भी मिल सकते
हैं. चाहे बचपन में मिलें, चाहे जवानी में, या फिर बुढ़ापे में. कहने का मतलब है
कभी भी मिल सकते हैं . आपकी किस्मत से ही आपको मिलते हैं. आप और हम इनसे कुछ सीख पाते हों या नहीं , ज़िन्दगी जीने का सही
तरीक़ा और सही सलीक़ा ज़रूर सीख लेते हैं. इस मतलब-परस्त दुनिया में हालाँकि कम लोग
ही ऐसे होते हैं. वैसे इस क़ायनात में किसी दूसरे के ऐसे होने की उम्मीद सब करते
हैं. जबकि ऐसी उम्मीद करने के बजाए हम ख़ुद भी ऐसी मिसाल बन सकते हैं. क्योंकि कोई
फ़रिश्ता तो बनना नहीं है . सिर्फ़ इन्सान ही बनना है.और इन्सान बनना कोई इतना
मुश्किल काम भी नहीं
जिस्म से परे रूहों
का एक रूहानी रिश्ता होता है,
बिन देखे,बिन कहे भी
हर अफ़साना बयाँ होता है.
दर्द हो, या हो
हँसी,रंज हो के हो ख़ुशी,
हर एहसास लहरों सा
रवाँ होता है.
निगांहों की हदों के
पार,लफ्ज़ हों जब बेआवाज़,
दिल से दिल तक रूहों
की होती तब परवाज़.
बेजिस्म रूह गुज़रती
है छूकर हर एहसास,
ख़ामोशियों को दे
देती ख़ामोशी से आवाज़.
तन्हाइयों को कर
कोने-कोने से तलाश,
हमसफ़र जाती हैं बन
हर हालात की.
ख़बर ना होने पाती
ख़ुद को भी,
कैसे ये, कब हुई शुरुआत थी.
रौशनी में नहला कर
जिस्मों को,
चाँदनीं बन जाती ये
मश्वरात की.
नहीं इन्तेख़ाब इनका
हम करते,
चुनती हैं ये हमें
अपना जान के.
हमारी उदासी भी इनके
सर माथे,
सारी खुशियाँ ये
हमको पहना दें.
निगाह इनकी बड़ी
शातिर,
ग़मों को ना लाती ये
ख़ातिर.
हमारी रूह को जो
छूकर जाता है,
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