इन्सान की ज़िन्दगी में ख़ुशी के पल होते हैं ,तभी
साथ-साथ ग़म भी चुपके से आ जाते हैं.क़ामयाबी रहती है दामन में तो नाक़ामयाबी भी चली
आती है, दबे पाँव. कभी-कभी कई साथी साथ होते हैं तो कई मर्तबा सब साथ छोड़ देते
हैं. सारा जहाँ करवट बदल कर दोस्त से दुश्मन बन जाता है. जिस तरह से मौसम बदलते
हैं. हालात भी बदलते रहते हैं. कभी खिज़ा होती है, तो कभी मुस्कुराकर बहार आ जाती
है. किसी भी हालात का सामना करने से कभी भी घबराना नहीं चाहिए. हालाँकि कहने में
आसान लगता है ,कर गुज़रना भी लेकिन ज़्यादा मुश्किल नहीं. अच्छे वक़्त में हम
अपने आप को और जहाँ को उतने अच्छे से नहीं जान पाते, जितना वक़्त के बदतर हालात में
समझ पाते हैं. हर इम्तेहान सीखने के लिए होता है. कुछ ना कुछ सिखा कर ही जाता है.
ख़ुद की क़ाबिलियत का भी इम्तेहान हो जाता है. तभी हमें मालूम होता है. अरे! हम तो
ख़ुद को किसी और बात में माहिर समझते थे. हक़ीक़त बिल्कुल उलट भी हो सकती है कभी.
इसलिए हर लम्हे का ख़ुशदिली से ख़ुशइख़लाक़ी से इसतेक़बाल करने का एक अलग ही मज़ा होता
है.
अब जो होने लगे थोड़े
से इम्तेहान
ख़ुद को समझना हो चला
आसान.
मंज़र दर मंज़र अपने
होने लगे पराए
दश्त बन गए जो शहर
थे बसे-बसाए
मसान बन गए जो थे
गुलज़ार कभी
दिन की तपन सी हो
चली चांदनी
परिंदों का उड़ना हो
चला जानलेवा
मंज़र देखते रहे
किनारे पर खड़े हम
कभी दम तोड़ते हैं
अल्फ़ाज़
कभी वक़्त से लड़ते है
ख़यालात
रिश्ता हो ख़ुशी से
ग़म का
या हो बेख़ौफ़ से खौफ़
का
जाने कैसे-कैसे हो
गए हालात
मुस्कुराती है
ख़ामोशी कभी
डराती है ये तन्हाई
कभी
दिन के प्याले में
रौशनी के शरारे
क़तरा-क़तरा होने लगते
हैं अब
यक़ीन के मोती टूटने
लगते हैं जब
मौसम किसी वक़्त आया
था मुस्कुराकर
सारे जहाँ ने उसे
पुकारा था अपनाकर
वक़्त ने किस तरह से
ली करवट
मुस्कुराहट में आ
बसी छटपटाहट
ये नज़रिया ही है
सारी कड़वाहट शायद
किसी को किसी पर
नहीं ऐतबार
किसी की ज़रुरत से
नहीं कोई दो-चार
ख़ुद से ख़ुद का जाता
रहा एतबार भी
आँखों में चराग़
होंगे रौशन तभी
देखेंगे पलकों से
अंधेरों को हटा जब
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