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Wednesday 11 May 2016

khamoshiख़ामोशी



इंसान जैसे-जैसे बड़ा होता जाता है,कुछ-ना कुछ नया सीखता जाता है. उसके कई ख़यालात भी बदलते जाते हैं. पहले वो ज़माने को अपने जैसा बनाना चाहता था,थोड़े वक़्त के बाद ज़माने जैसा बनने की कौशिश करने लगता है. कोई साथी हो तो उसके जैसा बन कर उसके साथ रहना चाहता है. लेकिन ये भी कोई सही फ़ैसला नहीं होता. उसे धीरे-धीरे ये समझ में आ जाता है कि किसी की नक़ल करने से बड़ी बेवकूफ़ी कोई और नहीं होती. हु-ब-हु किसी जैसा बन कर नहीं जिया जा सकता सुकून के साथ.जब उसकी ज़िन्दगी में हमसफ़र की आमद होती है तब,चाहता है कि जो उसे पसंद है साथी की भी वही पसंद हो और उसकी ख़ातिर उसका साथी अपनी आदते भी बदल डाले. और ये बिलकुल भी  सही बात नहीं होती है,कि अपने साथी की आदतें, उसकी पसंद-नापसंद को बदला जाये. ऐसा हरगिज़ भी सही नहीं है कि बदल कर ही वो आपका सच्चा साथी बन सकता है. वो जैसा भी है अपनी एक अलग शख़सियत रखता है. उसे आप दिल से अपनाएंगे तभी सही मायने में आप एक अच्छे और सच्चे हमसफ़र साबित होंगे.

सुनता रहता है दिल ख़ामोशी से
बातें जो तुमने कही सरगोशी से
चुप रहना फ़ितरत इसकी  सही
कहते रहना आदत तुम्हारी रही

सौ-सौ शिक़ायतें सारी  सुनी मैंने
नही की कभी बातें अनसुनी मैंने
ख़ामोशी याने के ना सुनना नहीं  

ख़ामोशियाँ मेरी भी कहती  रहीं
आवाज़ दी नहीं,बुलाया ना कभी

चाहा यही लेकिन हरदम मैंने भी
सुनलो सदाएँ मेरी  हमदम कभी
इल्तजा ख़ामोशी मेरी करती रही

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