दुनिया में आने वाला
हर शख़्स एक ना एक दिन मरता ज़रूर है,पर हर शख़्स जीता भी कहाँ है?यानि एहमियत इस बात
की नहीं,कि ज़िन्दगी जीने के बाद आप कहाँ जाएंगे?जन्नत मिलती है आपको या दोज़ख़ मिलती
है. असल और ज़रूरी सवाल ये होना चाहिए कि आपने इस ज़िन्दगी को कैसे जिया? खुशियों को
अपना कर जन्नत की तरह लुत्फ़ उठाया या ग़मों के साग़र में गोतें लगा कर अपनी ज़िन्दगी
को जहन्नुम बना लिया. हमेशा शक़,डर,नफ़रत या गुस्से में रहने वाले के लिए खुशियाँ ना
तो इस जहाँ में होती हैं और ना उसे ये कहीं और मिलती हैं. अपने किसी काम को करने
से पहले ये ना सोचें,कि आप अकेले हैं, चाहे आप सब नहीं कर सकते हों,पर कुछ तो होगा
जो आप कर सकते हों,तो फ़िर अपने क़दमों को बढ़ने से नहीं रोकना चाहिए. बात जो आपके बस
के बाहर की हो जिसके होने या ना होने पर आपका कोई अख़्तियार नहीं होता,आप अगर हर उस
बात की फ़िक्र छोड़ दें,तो समझ लीजिये आपको हमेशा ख़ुश रहने का रास्ता मिल गया.
शिक़ायतें चलती रहती
हैं. साथ-साथ इनके ज़िन्दगी भी चलती रहती हैं. अब ख़ुश होकर जियें या शिक़वा कर-कर के
जियें.जीना तो है ही,तो क्यों ना ख़ुश हो कर ही जिया जाये.एक फ़ारसी कहावत है कि,ज़िन्दगी
में गुलाब चाहते हो तो काँटों की इज़्ज़त करना सीखो.यानि ये जान लेना ज़रूरी है कितना
छोटा सा भी टुकड़ा हो उसके सिरे दो ही होते हैं. किसी बात के पहलु भी दो ही होते
हैं,तो ख़याल भी दो ही होंगे.अब आप किसे अपनाते हैं?
मेरे
एतेक़ाफ़ को जलावतन बना दिया
वक़्त
ने किस बात का कैसा सिला दिया
हर-एक
का अपना-अपना ज़ख्म हैं यहाँ
सबने
अपनी आग़ में ख़ुद को जला दिया
रूह भटकती है अपने
ही जिस्मों में
इंसान को ये कैसा
खँडहर बना दिया
सफ़ेद ख़ून भी जहाँ ने
किया बर्दाश्त
तूने आदम को आदमख़ोर
बना दिया
आँधियों में चरागों
ने फ़िर भी रखा दम
ये क्या अंधेरों ने
उजालों को जला दिया