इंसान अपने दिल की ख़्वाइश को अंजाम देने में जो ख़ुशी महसूस करता है,
उससे बेहतर उसके लिए दुनिया में कोई काम हो ही नहीं सकता. दिली ख़्वाइश इंसान को
अपनी तरफ़ हमेशा ही एक अनदेखी डोरी की तरह खींचती है. कभी-कभी इंसान ख़ुद नहीं जान
पाता और कभी-कभी जानने के बाद किसी से कह नहीं पाता. कई बार तो लोग दिल की
गहराइयों में बसने वाली अपनी ख़्वाइश को पूरा करने की कोशिश से भी डरते हैं. पर,
हाँ हक़ीकत यही होती है, जब तक ख़्वाइश पूरी नहीं होती इंसान कभी मुकम्मल तौर पर
मुतमईन नहीं हो सकता. जो है वो तो बस है. हक़ीक़त वो हो सकती है जो आप चाहते हो. अगर
ज़िन्दगी में कुछ ऐसा है जो आप नहीं चाहते और आज आप ये जान गए हैं, तो फ़ौरन उसे छोड़
देने में ही समझदारी है. ज़िन्दगी के आईने में यूँ उलझ कर रह जाने से बेहतर ये होगा
कि आप ऐसा कोई क़दम उठायें जिससे आप एक मनपसंद नयी शुरुआत कर सकें. वक़्त आपका सबसे
सच्चा दोस्त होता है. पर ये ठहरता उसी के साथ है जो इसकी दोस्ती को समझ लेता है. इसलिए
कोई बात जो आपको ग़मगीन करती हो तो अपनी ज़िन्दगी को बदलने का सही वक़्त आपके लिए यही
है.ज़िन्दगी से रूठे रूठे रह कर उसे यूँ ना गुज़ारो. ज़िन्दादिली से जियो ज़िन्दगी को.
आदत नहीं ख़फ़ा होना,क्या पैमाना छलके भी नहीं
दिल हो गर ज़ख़्मी,ख़ामोशी रूठ जाना भी नही
रूह में नश्तर चुभे गर,दिल से लहू छलके भी नहीं
ज़ख़्म दे ज़माना कहे,रुख़ पर दर्द झलके भी नहीं
इन्तेहाँ तकलीफ़ की ना ढूंढ,निशां मिलेंगे भी नहीं
सदा एक मुद्दत बाद सुनी,जो उसने दी भी नहीं
साँसें रुक सी गई,क़दमों तले ज़मीं रही भी नहीं
फ़ासलों की ज़मी पर,दूरी मिटाने की फ़सल उगेगी भी नहीं
जल कर इंसाँ ख़ाक हो गए,यहाँ नफ़रतों की कमी भी नहीं
परवाह की न दर्द की मैंने,पर वो मुझसे जुदा है भी नहीं
आदत नहीं ख़फ़ा होना क्या पैमाना छलके भी नहीं
दिल हो गर ज़ख़्मी तल्ख़ होना
रूठ जाना भी नही
No comments:
Post a Comment