दुनिया में हम सारे
ज़माने के साथ बेहतरीन से बेहतरीन रिश्ते बनाते हैं और उन्हें निभाते भी बड़ी शिद्दत
के साथ हैं. हम भूल जाते हैं तो बस एक बात कि हमें भी ख़ुद की ज़रूरत होती है. एक
रिश्ता ख़ुद से ख़ुद का भी ज़रूरी है. दूसरों के लिए,उनकी जरूरतों के लिए आपकी मौजूदगी
बहोत अच्छी बात है. थोड़ा सा वक़्त अपने आप के लिए भी होना चाहिए,ख़ुद के पास. ये
एहसास आपको ज़िन्दगी से भरपूर होने का एहसास दिलाएगा,एक सुकून से सराबोर करेगा कि
आप,आप हैं. सबकी ख्वाइशें पूरी करें,सबकी फ़रमाइशें पूरी करें,बस इस सबकी फ़ेहरिस्त
में ख़ुद को भी शामिल कर लें. ज़रूर दूसरों की आपके बारे में राय सुने, पर उनके नज़रिये से ख़ुद को ना देखें.ख़ुद
को शाबाशी देना सीखें. अपने लिए ख़ुद फ़ैसले लें ना कि बग़ेर सोचे समझे दूसरों के
फैसलों पर अमल कर डालें. ख़ुद के लिए जीना सीखें. अपने शौक़, अपनी पसंद और उन बातों
का जो आपके लिए एहमियत रखती हैं,उनका भी ख़याल रखें. जब आपका अपने आप से इतना
प्यारा रिश्ता बन जायेगा,कि आपकी ख़ुशी, आपके ग़म, आपकी ज़रूरत के वक़्त आप ख़ुद के
क़रीब मौजूद रहते हैं तब आप सुकून तो पाएँगे ही अपने अन्दर ज़िदगी जीने की एक नई
ताक़त महसूस करेंगे.और तब आपकी ज़िन्दगी की ख़ुशहाली का आप ज़रा तसव्वुर तो कर के
देखिये. बस पहला क़दम उठाइए
और मज़बूती से उस पर क़ायम रहिये.
इरादे हों मजबूत,नज़ाक़त
की क्या बात
ताक़त हो फ़ौलादी,नज़ाक़त
की क्या बात
आसां नहीं मंज़िल,नाज़ुक
हो गर मिजाज़
नाज़ुकमिजाज़ी में गुम
हुए सारे नवाब
नसीहत है नज़ाक़त से अपनी कहो बात
कहते वही सच हो,
पुख़्ता हो जो बात
क्यों चुनने बैठें फिर
नाज़ुक अल्फ़ाज़